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व्याकरण
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वर्ण’ किसे कहते हैं
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वर्तनी किसे कहते हैं
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विराम चिन्ह
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हिन्दी-व्याकरण | Hindi Grammar Tutorials
About Lesson

भाषा किसे कहते हैं , परिभाषा , भेद

भाषा किसे कहते हैं और भाषा कितने प्रकार के होते हैं

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहने के लिए मनुष्य को अपने विचारों और भावों को व्यक्त करना पड़ता है और दूसरों के द्वारा व्यक्त विचारों और भावों को समझना पड़ता है। इन्हें व्यक्त करने के साधन हमारे पास अनेक हैं। हम शारीरिक या वस्तु संकेत के माध्यम से या मौखिक ध्वनि अथवा लिखित रूप में इन्हें व्यक्त करते हैं।
 
जैसे — मान लीजिए , आपको एक कप चाय की आवश्यकता है। इस भाव , विचार या इच्छा को तीन रूपों में व्यक्त किया जा सकता है।
 
(1) कप या चाय की केतली की ओर उँगली से संकेत कर माँगना। या
(2) मौखिक ध्वनि द्वारा — कृपया , मुझे एक कप चाय दीजिए।
या
(3) कागज पर लिखकर — कृपया , मुझे एक कप चाय दीजिए।
 
चाय माँगने के लिए प्रथम विधि जो आपने अपनायी, उसे भाषा की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
 
हाँ, दूसरा और तीसरा ढंग जो आपने अपनाया – वही भाषा है, अर्थात् मौखिक भाषा और लिखित भाषा।
 
दूसरे शब्दों में — भावों या विचारों के लिए प्रयुक्त अर्थपूर्ण ध्वनि (मौखिक) या ध्वनि – संकेत (लिखित) की व्यवस्था भाषा है।

मौखिक एवं लिखित भाषा

भाषा अभिव्यक्ति के मुख्यतः दो रूप हैं — 
(1). मौखिक
(2). लिखित
 

मौखिक भाषा किसे कहते हैं 

मुख द्वारा उच्चरित भाषा यदि अर्थपूर्ण हो, तो वह मौखिक भाषा कहलाती है। भाषा का यह रूप मानव को सहज ही सामाजिक वातावरण से प्राप्त होता है। पढ़े – लिखे या अनपढ़ इस मौखिक भाषा का प्रयोग करते हैं। हाँ , यह सही है कि पढ़े – लिखे लोग अपेक्षाकृत शुद्ध भाषा का प्रयोग करते हैं और अनपढ़ अशुद्ध का। दूसरी बात , लिखित भाषा का प्रयोग सिर्फ पढ़े – लिखे लोग ही कर सकते हैं , अनपढ़ नहीं।
 

लिखित भाषा किसे कहते हैं

मौखिक भाषा के द्वारा हम अपने विचारों और भावों के स्मरण को हू-ब हू अधिक दिनों तक सुरक्षित नहीं रख सकते, अतः उन विचारों और भावों को लिखित संकेत (लिपि) के माध्यम से कागज पर व्यक्त करते हैं। यही लिखित भाषा कहलाती है
लिखित भाषा सीखने में अपेक्षाकृत अधिक श्रम और समय की आवश्यकता होती है। स्पष्ट है कि – मुख द्वारा उच्चरित अर्थपूर्ण ध्वनि, मौखिक भाषा है और किसी प्रतीक चिह्न द्वारा उन ध्वनियों को सांकेतिक रूप देना लिखित भाषा है।

हिन्दी भाषा का परिवार

जिस प्रकार मनुष्यों का अपना वंश और परिवार होता है, ठीक उसी तरह भाषा का भी होता है। किसी एक भाषा – परिवार की समस्त भाषाओं का जन्म, किसी एक मूल भाषा से हुआ माना जाता है। जब एक जगह के निवासी दूर दराज में जाकर बसते चले गये, तो वहाँ की भाषा और इनकी भाषा के मेल से एक तीसरी भाषा विकसित होती चली गयी। ऐसी भाषाएँ जो एक ही वंश (मूल भाषा) से निकलकर विकसित हुईं , सम्मिलित रूप से एक भाषा – परिवार कहलाती हैं। फिर कालांतर में उनके भी उप – परिवार बनते चले गये। 
 
हिन्दी तथा उत्तर भारत की अधिकांश भाषाएँ — सिन्धी , पंजाबी , हरियाणवी , गुजराती , बंगला , मराठी , नेपाली (विदेशी भाषा) आदि आर्य – परिवार की भाषाएँ मानी जाती हैं , जिनका मूल स्रोत संस्कृत है। यह आश्चर्य की बात है कि संस्कृत जिस मूल भाषा से निकली है, उसी से ग्रीक , ईरानी आदि भाषाएँ भी विकसित हुई हैं और इन्हीं की आज अँगरेजी , जर्मन आदि अनेक वंशज भाषाएँ हैं। अतः , इस समस्त भाषा – परिवार को ‘ भारत – यूरोपीय ‘ भाषा – परिवार कहा जाता है। भारत – यूरोपीय भाषा – परिवार की जो भाषाएँ भारत में बोली जाती हैं . ‘ भारतीय आर्य भाषाएँ ‘ कही जाती हैं। इनमें क्रमशः वैदिक संस्कृत , लौकिक संस्कृत , पालि – प्राकृत तथा अपभ्रंश हैं। इन्हीं से सैकड़ों वर्षों में हिन्दी भाषा का विकास हुआ।
 
दक्षिण भारत में एक दूसरा भाषा-परिवार है — द्रविड़ भाषा-परिवार। इसकी भाषाएँ हैं तमिल , तेलुगु , कन्नड़ और मलयालम। सम्पूर्ण विश्व में इन ‘ भारत यूरोपीय ‘ और ‘ द्रविड़ भाषा-परिवार ‘ के अतिरिक्त अनेक भाषा-परिवार हैं।
 

हिन्दी एवं अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ

आधुनिक भारतीय भाषाओं का उद्भव अपभ्रंश से हुआ है। यह लगभग 500 से 1000 ई ० के बीच हुआ था। उस समय इसके कई रूप प्रचलित थे शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी आदि। इन्हीं भाषाओं से अन्य भाषाएँ निकली हैं।अपभ्रंश (जन – साधारण की भाषा) पालि एवं प्राकृत से विकसित हुई है और पालि प्राकृत वैदिक संस्कृत से।
 
आर्य परिवार की आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रमुख हैं — हिन्दी , गुजराती , मराठी , सिंधी , पंजाबी , बंगला , असमिया और उड़िया। संस्कृत से विकसित होने के कारण इन भाषाओं पर संस्कृत का बहुत अधिक प्रभाव है। साथ – ही साथ द्रविड़ भाषा – परिवार का भी इन भाषाओं पर प्रभाव है और इस भाषा – परिवार पर संस्कृत का।
 

हिन्दी भाषा का आधुनिक रूप 

आज जिस रूप में हिन्दी भाषा बोली और लिखी जाती है, वह खड़ी बोली का ही सुधरा हुआ रूप है। खड़ी बोली का प्राचीन स्वरूप लगभग 10 वीं शताब्दी से प्रारंभ माना जाता है। 13 वीं -14 वीं शताब्दी में अमीर खुसरो के द्वारा पहली बार हिन्दी में कविता रची गयी , जिसका नाम था – ” पहेलियाँ – मुकरियाँ ” 
यह एक कविता संग्रह है। इसकी दो पंक्तियों को देखें 
 
एक थाल मोती से भरा । सबके सिर पर औंधा धरा । 
चारों ओर वह थाली फिरे । मोती उससे एक न गिरे ।
भारत में मुसलमानों का बहुत दिनों तक शासन रहा। ये इस खड़ी बोली को दक्षिण भारत में ले गये। वहाँ अरबी – फारसी में लिखी भाषा को ‘ दक्कनी उर्दू ‘ का नाम मिला। हालाँकि मध्यकाल तक खड़ी बोली जनसाधारण की बोली हो चली थी और उत्तर भारत में खूब प्रचलित थी। फिर भी उस समय तक खड़ी बोली का साहित्यिक विकास नहीं हो सका था , क्योंकि ब्रजभाषा , अवधी और मैथिली ही काव्य की भाषाएँ थीं। और , इसी क्रम में सूरदास ने ‘ ब्रजभाषा ‘ को, तुलसी ने अवधी को और विद्यापति ने मैथिली को साहित्यिक दृष्टि से चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया। दूसरी विडंबना , उधर राजकाज की भाषा ‘ फारसी ‘ थी।
 
परिणाम यह हुआ कि खड़ी बोली का साहित्यिक विकास उस वक्त तक नहीं हो सका। लेकिन , 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में ज्ञान – विज्ञान , कला – कौशल , अँगरेजी गद्य साहित्य का भारत में प्रसार , सामाजिक और राजनैतिक चेतना का उदय , उधर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र , महावीर प्रसाद द्विवेदी , राहुल सांकृत्यायन आदि के गद्य साहित्यों के कारण तथा जनसम्पर्क की भाषा होने के कारण , उत्तर भारत में इसका झंडा फहराया। फिर तिलक , गाँधी , नेहरू , दयानन्द सरस्वती आदि महापुरुषों के जन अभियान ने इस भाषा की प्रगति को और तीव्र कर दिया। फलतः , यह लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष की जनसम्पर्क – भाषा हो गयी। इस विकास में चलचित्र का भी अच्छा योगदान रहा।
 
 

हिन्दी – क्षेत्र एवं बोलियाँ 

हिन्दी का क्षेत्र अब बहुत व्यापक हो चला है। यह बिहार , उत्तरप्रदेश , राजस्थान , मध्यप्रदेश , पंजाब , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , दिल्ली , महाराष्ट्र , बंगाल आदि भारतीय सीमा तक ही सीमित नहीं है
 
वरन् बर्मा , लंका , मॉरिशस , सूरीनाम , दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका तक थोड़ा – बहुत फैला हुआ है। हिन्दी खड़ी बोली से विकसित है , लेकिन अलग – अलग क्षेत्रों में इसकी बोली में थोड़ी बहुत भिन्नता है।
 
यहाँ बोली और भाषा के अंतर को समझना जरूरी है । घरेलू या क्षेत्रीय भाषा को ‘बोली’ कहा जाता है और साहित्यिक भाषा को ‘भाषा’
 
जैसे — 
मुझे भी चाय दीजिए । ( यह हिन्दी भाषा है । ) 
हमरो के चाय द हो । ( यह क्षेत्रीय या घरेलू बोली है । )
 
हिन्दी की बोलियों को अध्ययन की दृष्टि से पाँच भागों में बाँटा जा सकता है . 
(1) पूर्वी
(2) पश्चिमी
(3) राजस्थानी 
(4) बिहारी
(5) पहाड़ी हिन्दी
 
पूर्वी हिन्दी — इसमें प्रमुख बोलियाँ हैं -अवधी , बघेली और छत्तीसगढ़ी। अवधी भाषा में तुलसीकृत ‘ रामचरितमानस ‘ और मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘ पद्मावत ‘ प्रसिद्ध काव्य हैं।
 
पश्चिमी हिन्दी — इसमें प्रमुख बोलियाँ हैं . -ब्रजभाषा , खड़ी बोली , हरियाणवी , बुंदेली और कन्नौजी। ब्रजभाषा में सूरदास और नन्ददास की कृष्णभक्ति से सराबोर उत्कृष्ट काव्य रचनाएँ हैं। खड़ी बोली विशेषकर दिल्ली , मेरठ , गाजियाबाद , बिजनौर और सहारनपुर तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।
 
राजस्थानी हिन्दी — राजस्थान प्रदेश में प्रयुक्त बोलियों के समूह को राजस्थानी हिन्दी कहते हैं। इनमें प्रमुख हैं- मारवाड़ी , मेवाड़ी , मेवाती , हाड़ोती आदि।
 
बिहारी हिन्दी — बिहार तथा झारखंड प्रदेशों में प्रयुक्त बोलियों के समूह को बिहारी हिन्दी कहते हैं। इनमें प्रमुख हैं -मैथिली , भोजपुरी , मगही और बज्जिका। मैथिली के आदि कवि ‘ विद्यापति ‘ की प्रसिद्ध ‘ पदावली ‘ मैथिली में ही है।
 
पहाड़ी हिन्दी — हिमाचल की बोली (मंडियाली), गढ़वाल की बोली (गढ़वाली) और कुमाऊँ पहाड़ी की बोली (कुमाऊँनी) , पहाड़ी हिन्दी कहलाती है।
 

(भाषा किसे कहते हैं) और (व्याकरण किसे कहते हैं)

भाषा और व्याकरण में चोली-दामन का संबंध है। लेकिन हाँ , किसी भी भाषा का प्रादुर्भाव पहले होता है और व्याकरण उसके पीछे-पीछे चलता है। भाषा मानक हो तथा इसमें एकरूपता रहे , इसके लिए कुछ नियम बनाए जाते हैं। यही नियम व्याकरण है।
 
दूसरे शब्दों में , भाषा की मानक लिपि क्या हो , वर्णों या अक्षरों का कैसा संयोजन हो , शब्दों की रचना कैसे हो , वाक्यों की संरचना में किन – किन बातों का ख्याल रखा जाए , इससे सम्बद्ध हर भाषा का अपना अलग अलग नियम होता है। इसकी व्याख्या और व्यवस्था व्याकरण का काम है।

अतः , ” व्याकरण एक ऐसा शास्त्र है जिसके अध्ययन से शुद्ध – शुद्ध बोलना और लिखना आता है । ” 

हिन्दी व्याकरण कितने प्रकार के होते है

सुविधा की दृष्टि से हिन्दी व्याकरण को पाँच भागों में बाँटा गया है।
(1) वर्ण – विचार
(2) शब्द – विचार
(3) वाक्य – विचार
(4) चिह्न – विचार
(5) छंद – विचार
 
(1). वर्ण-विचार — वर्ण – विचार में , वर्णों या ध्वनियों की परिभाषा , उनके मानक रूप (लिपि) , उनकी संख्या , भेद , आपसी संयोग आदि का अध्ययन किया जाता है। 
 
(2). शब्द-विचार — इसमें शब्द की परिभाषा , भेद , शब्दों की व्युत्पत्ति , रचना , रूपांतर , प्रयोग , अर्थ आदि का अध्ययन किया जाता है।
 
(3). वाक्य-विचार — इसके अन्तर्गत वाक्य की परिभाषा , भेद , वाक्य की बनावट , वाक्य की शुद्धता आदि का अध्ययन किया जाता है।
 
(4). चिह्न-विचार — इस अध्याय में वाक्यों में प्रयुक्त विभिन्न चिह्नों एवं उनके प्रयोग का अध्ययन किया जाता है।
 
(5). छंद-विचार — इस अध्याय में छंद की परिभाषा , उनके स्वरूप , भेद आदि का अध्ययन किया जाता है। काव्य साहित्य में इसकी विशेष महत्ता है।
 

Conclusion निष्कर्ष —

आज के लेख मे हमने हिन्दी व्याकरण विषय के एक महत्वपूर्ण तॉपिक को समझा जोकि है ‘भाषा’ हमने इस लेख के द्वारा आपको बताया भाषा किसे कहते हैं , भाषा कितने प्रकार का होता है इन सभी सवालो के जवाब आपको इस लेख मे विस्तारपुर्वक समझाया गया है।
 
हमे उमीद है आपको इस लेख द्वारा दी गई जानकारी से bhasha kise kahate hain को समझने मे बहुत मदद मिली होगी। अगर आपके मन मे कोई भी सवाल है तो आप हमे निचे कमेंट करके पुछ सकते है। और ये लेख आपको कैसा लगा , अगर आपको इस लेख मे कोई भी कमी लगे तो भी आप हमे कमेंट करके जरुर बताए हम उस कमी को जल्द ठीक करने को कोसिस करेंगे। और इस लेख को अपने मित्रो के साथ वॉट्सएप्प और फेसबुक पर शेयर जरुर करे।
 
 
 
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