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हिन्दी-व्याकरण | Hindi Grammar Tutorials
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Lokoktiyan In Hindi – लोकोक्तियाँ किसे कहते हैं?

लोकोक्तियाँ किसे कहते हैं (lokoktiyan kise kehte hain)

लोकोक्तियाँ एवं कहावतें को अंग्रेजी में ‘Proverbs’ कहा जाता हैं। यह अपने आप में एक प्रकार का वाक्य होता है जिसका प्रयोग स्वतंत्र रुप से किसी उचित समय, घटना या अवसर पर किया जाता है। इसके सटीक प्रयोग से व्यक्ति का भाषा-ज्ञान परिलक्षित होता हैं।
 
लोकोक्ति दो शब्दों से मिलकर बना है लोक + उक्ति जिसमें की लोक का अर्थ होता है ‘लोग’ तथा उक्ति का अर्थ होता है ‘कही गई बातें’ अर्थात् ‘लोगो द्वारा कही गई बातें’
 
लोकोक्ति की परिभाषा — ऐसा वाक्य, कथन अथवा उक्ति जो अपने विशिष्ट अर्थ के आधार पर संक्षेप मे ही किसी सच्चाई को प्रकट कर सके उसे ही हम लोकोक्ति या कहावत कहते हैं।
 

(Lokoktiyan In Hindi) लोकोक्ति किसे कहते हैं प्रमुख उदाहरण सहित समझाइए —

▪︎ अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता (अकेला आदमी कठिन कार्य नहीं कर सकता) — माना आप समाज सुधारक हैं , लेकिन समाज की कुरीतियों को आप अकेले दूर नहीं कर सकते। कहा भी गया है — ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’।
 
▪︎ अधजल गगरी छलकत जाए (ओछे व्यक्ति में अकड़पन होता है) — मेरे गाँव का एक व्यक्ति है, मैट्रिक फेल और बातें करता है, लम्बी-चौड़ी ! कहावत सही है — ‘अधजल गगरी छलकत जाए’।
 
▪︎ आगे नाथ न पीछे पगहा (दायित्व विहीन व्यक्ति) — मोहन के परिवार में कोई नहीं है। वह दिन-रात यहाँ-वहाँ भटकता रहता है। अपने में मस्त रहता है। ‘आगे नाथ न पीछे पगहा’।
 
▪︎ अंधों में काना राजा (तुलना की दृष्टि से छोटी वस्तु भी बड़ी लगना) — रामपुर गाँव में सभी व्यक्ति मजदूर हैं। किसी भी व्यक्ति के पास खेती के लिए एक ईंच जमीन नहीं है, लेकिन सोनू के पास दो एकड़ जमीन है। सभी लोग उसे बहुत अमीर समझते हैं। सच ही है — ‘अंधों में काना राजा’।
 
▪︎ आँख का अंधा नाम नयनसुख (गुण के विरुद्ध नाम) — देखो न ! नाम है उसका शेर सिंह और एक कुत्ता भी भुंकने लगे तो घर से नहीं निकलता। सच ही कहा गया है — ‘आँख का अंधा नाम नयनसुख’।
 
▪︎ आधा तीतर, आधा बटेर (बेमेल चीजों का एक साथ रहना) — कभी तो तुम आई० ए० एस० की तैयारी करते हो और कभी फिल्म-एक्टिग कोर्स करने लगते हो। इस तरह आधा तीतर और आधा बटेर से कुछ हासिल नहीं होगा।
 
▪︎ आटे के साथ घुन भी पिसता है (दोषी के साथ निर्दोष भी दंडित होता है) — मोहन तो निर्दोष है , लेकिन आज उसे अपराधी मित्र (सोहन) के साथ जेल की हवा खानी पड़ी। क्यों न हो, आटे के साथ घुन भी पिसता है।
 
▪︎ आम के आम, गुठली के दाम (दूना फायदा उठाना) — विद्या अर्जन से ज्ञान की प्राप्ति के साथ अर्थोपार्जन भी होता है, अर्थात — ‘आम के आम गुठली के दाम’।
 
▪︎ आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास (बड़े काम को छोड़कर छोटे काम में लग जाना) — प्रोफेसर साहब के यहाँ यह सोचकर आया था कि आगे की पढ़ाई जारी रखूगा। यहाँ तो दिन-रात बच्चों को पढ़ाने से ही छुट्टी नहीं मिलती है। ‘आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास’।
 
▪︎ आप भला तो जग भला (अच्छे आदमी के लिए सारी दुनिया अच्छी) — राम और श्याम दोनों एक ही वर्ग में पढ़ते हैं। राम को आजतक किसी से झगड़ा नहीं हुआ। जबकि श्याम लगभग प्रतिदिन किसी-न-किसी से झगड़ लेता है और दोष अपने मित्रों पर मढ़ देता है, लेकिन सत्य यही है — ‘आप भला तो जग भला’।
 
▪︎ अपनी करनी, पार उतरनी (जैसा करोगे वैसा पाओगे) — मैंने तुम्हें बार-बार कहा कि बुरी संगति में मत रहो, लेकिन तुम माने नहीं। देखो ! तुमने स्वयं अपना सर्वनाश कर लिया। ‘अपनी करनी पार उतरनी’।
 
▪︎ अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत (अवसर बीत जाने पर पछताने से क्या लाभ) — जब पढ़ने का समय था, तो ध्यान नहीं दिया। अब कल से परीक्षा शुरु हो रही है। ‘अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत’।
 
▪︎ अक्ल बड़ी या भैंस (बल से बुद्धि बड़ी होती है) — गाड़ी को धक्का देते देते, हमलोग परेशान थे, गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई। लेकिन, महेश ने जैसे ही गाड़ी के एक छोटे-से पार्ट को जरा-सा कसा, वैसे ही गाड़ी स्टार्ट हो गयी। इसी को कहते हैं — ‘अक्ल बड़ी या भैंस’।
 
▪︎ अंधेर नगरी, चौपट राजा (चारों तरफ अन्याय एवं अव्यवस्था) — एक बार मैं कहीं जा रहा था। रास्ते में एक लाश पड़ी थी। मैंने पुलिस को इसकी इत्तला दी। खोज-बीन करने के बजाए पुलिस ने दो दिनों तक मुझे ही हाजत में बन्द कर दिया। हद हो गयी ! ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’।
 
▪︎ आँख का अंधा, गांठ का पूरा (मूर्ख लेकिन धनवान्) — वकीलों को पैसे की कमी कहाँ ! समाज में आँख के अंधे गाँठ के पूरे की कमी है?
 
▪︎ अपने दही को कौन खट्टा कहता है ? (अपनी चीज सबको अच्छी लगती है) — बेचन साह की दुकान के लगभग सारे सामान मिलावटी या घटिया स्तर के हैं। लेकिन , देखो न ! हमेशा उनकी प्रशंसा ही करता रहता है। सच है भाई ! ‘अपने दही को कौन खट्टा कहता है’ ?
 

(Kahawatein In Hindi) हिन्दी कहावतें किसे कहते हैं

▪︎ ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका — (एक संकट के बाद दूसरा संकट)
 
▪︎ ओस चाटे प्यास नहीं बुझती — (जरूरत से कम होने पर काम नहीं चलता)
 
▪︎ इस हाथ दे, उस हाथ ले — (किसी काम का फल शीघ्र ही भोगना)
 
▪︎ ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया — (कहीं सुख और कहीं दुःख का होना)
 
▪︎ उलटे चोर कोतवाल को डाँटे — (दोषी ही दोष बतलानेवाले पर बिगड़े)
 
▪︎ ऊधो का लेना, न माधो का देना — (लटपट से अपने आपको दूर रखना)
 
▪︎ ऊँट के मुँह में जीरा — (आवश्यकता अधिक लेकिन मिलना बहुत कम)
 
▪︎ ऊँची दुकान, फीका पकवान — (सिर्फ बाहरी चमक दमक, भीतर खोखलापन)
 
▪︎ ऊखल में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना — (कठिन कार्य में हाथ लगाकर विघ्न-बाधा की परवाह न करना)
 
▪︎ एक पंथ दो काज — (एक साथ दो काम या एक ही साथ दो-दो काम सधना)
 
▪︎ एक अनार, सौ बीमार — (वस्तु कम, लेकिन माँग बहुत अधिक)
 
▪︎ एक म्यान में दो तलवार — (सबल प्रतिद्वंद्वी एक साथ)
 
▪︎ एक तो चोरी, दूसरे सीनाजोरी — (गलती करना साथ ही रोब भी गाठना)
 
▪︎ एक हाथ से ताली नहीं बजती — (कोई लड़ाई एकतरफा नहीं होती है)
 
▪︎ कभी गाड़ी पर नाव, कभी नाव पर गाड़ी — (परिस्थितिवश एक दूसरे पर निर्भर करना ही पड़ता है)
 
▪︎ कहाँ राजा भोज, कहाँ भोजवा (गंगू) तेली — (बहुत छोटे की तुलना बड़ों से नहीं होती है)
 
▪︎ कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा  — (असंगत बेमेल वस्तुओं का मेल बैठाना, लेकिन मौलिकता का अभाव)
 
▪︎ का बरसा जब कृषि सुखाने — (अवसर बीत जाने पर सहायता व्यर्थ होती है)
 
▪︎ काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती — (छल-कपट सदा नहीं चलता है)
 
▪︎ काला अक्षर भैंस बराबर — (निरक्षर, अनपढ़)
 
▪︎ कौआ चला हंस की चाल — (छोटों या क्षुद्र व्यक्ति द्वारा बड़ों की नकल करना)
 
▪︎ खोदा पहाड़, निकली चुहिया — (प्रयत्न बड़ा, लेकिन लाभ छोटा)
 
▪︎ खरी मजूरी, चोखा काम — (समय पर पूरा दाम देने से काम अच्छा होता है)
 
▪︎ खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा — (गलती करे कोई, और फल भुगते कोई)
 
▪︎ खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे — (असफलता या लज्जा के कारण किसी दूसरी चीज पर क्रोध प्रकट करना)
 
▪︎ गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध — (दूर के ढोल सुहावन या घर की मुरगी दाल बराबर)
 
▪︎ गोद में लड़का, नगर (शहर) में ढिंढोरा — (पास की वस्तु की खोज दूसरी जगह)
 
▪︎ घर का भेदिया लंकादाह — (आपसी फूट से सर्वनाश हो जाना)
 
▪︎ घी का लड्डू टेढ़ा भी भला — (गुणवान् वस्तु या व्यक्ति का रूप रंग नहीं देखा जाता)
 
▪︎ चौबे गये छब्बे बनने, दूबे होके आये — (लाभ के बदले हानि उठाना)
 
▪︎ छछूदर के सिर पर चमेली का तेल — (नीच को सुंदर वस्तु की प्राप्ति)
 
▪︎ छोटे मियौँ तो छोटे मियौं बड़े मियाँ सुभान-अल्लाह — (बड़ों में छोटों की अपेक्षा अधिक बुराई या कमी)
 
▪︎ टेढ़ी अँगुली से ही घी निकलता है — (सीधापन से काम नहीं चलता है)
 
▪︎ तू डाल-डाल, मैं पात-पात — (नहले पर दहला, चालाकी का जवाब चालाकी)
 
▪︎ तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर — (अपनी शक्ति या सामर्थ्य के मुताबिक काम या व्यापार)
 
▪︎ दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंककर पीता है — ( धोखा खाने के बाद आदमी सँभल जाता है)
 
▪︎ दीवार के भी कान होते हैं — (कोई भेद या रहस्य न खुले, अतः सावधान)
 
▪︎ धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का — (निकम्मा व्यक्ति, कहीं का न रहना)
 
▪︎ न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी — (काम टालने के लिए साधन का बहाना)
 
▪︎ पढ़े फारसी बेचे तेल — (भाग्य क्या न करा दे)
 
▪︎ बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ ते होय — (बुरे काम का परिणाम बुरा ही होता है)
 
▪︎ भागते भूत की लैंगोटी सही या भली — (न से, जो मिल जाए वही काफी)
 
▪︎ मियाँ की दौड़ मस्जिद तक — (साधारण व्यक्ति का सीमित क्षेत्र में काम करना)
 
▪︎ रस्सी जल गयी, पर ऐंठन न गयी — (नाश हो जाने बाद भी व्यक्ति की अकड़ न जाना)
 
▪︎ होनहार बिरवान के होत चिकने पात — (महानता के लक्षण बचपन से दिखाई पड़ना)
 
▪︎ हाथी चले बजार, कुत्ता भुंके हजार — (काम करनेवाले या आगे बढ़नेवाले विरोध की परवाह नहीं करते)
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