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हिन्दी-व्याकरण | Hindi Grammar Tutorials
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‘वर्ण’ किसे कहते हैं, परिभाषा, स्वर, व्यंजन

वर्ण किसे कहते हैं (वर्ण के भेद)

वर्ण की परिभाषा — उच्चारित ध्वनि संकटो को (वायु) ध्वनि कहा जाता है जबकी लिखित ध्वनि संकेतो को देवनागरी लिपि के अनुसार वर्ण कहा जाता है।
अथवा
वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं , जिसके खंड या टुकड़े नहीं हो सकते।
जैसे — अ , आ , इ , ई , ओ , क् , ख् , च् , छ् , य , र , ल आदि।
 
 
अब कुछ शब्द या ध्वनियाँ लें और उनमें निहित मूल ध्वनि (वर्ण) को समझें। 
जैसे — ‘ खा लो । ‘ 
 
इस वाक्य में मुख्यतः दो शब्द या ध्वनियाँ सुनायी पड़ती हैं — ‘ खा ‘ और ‘ लो ‘ । अब इसका खंड करें 
 

खा (एक शब्द / ध्वनि) ख् + आ (दो मूल ध्वनियाँ / वर्ण) 

लो (एक शब्द / ध्वनि) ल् + ओ (दो मूल ध्वनियाँ / वर्ण)

 
स्पष्ट है कि — ‘ खा लो ‘ में चार मूल ध्वनियाँ या चार वर्ण हैं, क्योंकि — ( ख् , आ ) तथा ( ल , ओ ) के और टुकड़े या खंड नहीं हो सकते। 
इसलिए इन्हें वर्ण या मूल ध्वनि कहते हैं। इससे यह भी ज्ञात होता है कि — “भाषा की सबसे छोटी इकाई को मूल ध्वनि या वर्ण कहते हैं
 

वर्णमाला (Alphabet)

वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में निम्नलिखित वर्ण या ध्वनियाँ प्रयुक्त होती हैं
 
स्वर 11 — अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ 
अयोगवाह  2 — अं ( अनुस्वार ) , अः ( विसर्ग )
स्पर्श व्यंजन  25 —
क , ख , ग , घ , ङ 
च , छ , ज , झ , ञ 
ट , ठ , ड , ढ , ण 
त , थ , द , ध , न
प , फ , ब , भ , म
अंतःस्थ व्यंजन  4 —  य , र , ल , व
ऊष्म व्यंजन  4 —  श , ष , स , ह
संयुक्त व्यंजन  4 —   क्ष , त्र , ज्ञ , श्र
हिन्दी के अपने व्यंजन  2 — ड़ , ढ़
 
 

वर्ण के भेद (वर्ण कितने प्रकार के होते हैं)

वर्ण किसे कहते हैं ये जनने के बाद हम हम ये जानते है की वर्ण कितने प्रकार का होता है , मूल रुप से वर्ण दो प्रकार के होते है अथवा वर्ण के दो भेद हैं
 

(1). स्वर वर्ण ( Vowel )

(2). व्यंजन वर्ण ( Consonant )

 

स्वर वर्ण किसे कहते हैं

स्वर वर्ण — स्वर उन वर्णों या ध्वनियों को कहते हैं, जिनका उच्चारण स्वतः होता है।
जैसे — अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ।
 
इनकी संख्या 11 है। ये व्यंजन वर्गों के उच्चारण में भी सहायक होते हैं।
जैसे —  क् + अ = क ।        ख् + अ = ख ।
 

नोट —

(1) —- कुछ वैयाकरण ‘ ऋ ‘ को स्वर नहीं मानते हैं । उनका तर्क है कि इसका उच्चारण प्रायः ‘ रि ‘ – जैसा होता है , लेकिन मात्रा की दृष्टि से ‘ ऋ ‘ स्वर है। 
 
जैसे — 
ऋषभ , ऋषि , ऋण , ऋतु आदि । (‘ रि ‘ – व्यंजन ध्वनि) कृषक , कृषि , पितृण , पृष्ठ आदि । (‘  ृ ‘  – स्वर की मात्रा)
 
(2) —- अं ( ◌ं ) और अः ( : ) — हिन्दी वर्णमाला में ‘अं ‘ और ‘ अः ‘ को स्वरों के साथ लिखने की परंपरा है , लेकिन ‘ अं ‘ (अनुस्वार) और ‘ अः ‘ (विसर्ग) स्वर नहीं हैं। इन्हें ‘ अयोगवाह ‘ कहा जाता है।
 
(3) —- ऑ (   ॅ ) — इसे ‘ अर्द्धचन्द्र ‘ भी कहते हैं। इसका उच्चारण स्वर की तरह होता है , लेकिन यह अँगरेजी की स्वर ध्वनि है। इसे गृहीत / आगत स्वर ध्वनि कहते हैं । इसका प्रयोग प्रायः अँगरेजी के शब्दों में होता है।
 
जैसे — ऑफिस , ऑफसेट , कॉलेज , नॉलेज , स्पॉट , स्टॉप आदि।
 
 

स्वर वर्ण के भेद (स्वर वर्ण कितने प्रकार के होते हैं)

स्वर वर्ण के भेद मुख्यतः दो आधार पर किये जाते हैं — 
(1). उच्चारण में लगनेवाले समय
(2). जाति के आधार पर
 

(1). उच्चारण में लगनेवाले समय या उच्चारण-काल के आधार पर स्वरों के तीन भेद हैं

(क). ह्रस्व स्वर
(ख). दीर्घ स्वर
(ग). प्लुत स्वर
 

(क). ह्रस्व स्वर —

अ , इ , उ एवं ऋ ह्रस्व स्वर हैं। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं। ये एकमात्रिक होते हैं तथा इनके उच्चारण में दीर्घ स्वर की अपेक्षा आधा समय लगता है।
 

(ख). दीर्घ स्वर —

आ , ई , ऊ , ए , ऐ , ओ एवं औ दीर्घ स्वर हैं। इनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर की अपेक्षा दुगना समय लगता है। चूँकि इनमें दो मात्राओं का समय लगता है , अतः इन्हें द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं। दूसरे शब्दों में , इनमें दो स्वरों की संधि रहती है।
 
जैसे —
आ = अ + अ । 
ई = इ + इ ।
ऊ = उ + उ ।
ऐ = (अ + इ) / (अ + ई) / (आ + इ) / (आ + ई) ।
ऐ = (अ + ए) / (आ + ए) ।
ओ = (अ + उ) / (आ + उ) / (आ + ऊ) ।
औ = (अ + ओ) / (आ + ओ) / (अ + ओ) / (आ + औ) ।
 
नोट — इन्हीं दीर्घ स्वरों में — ए , ऐ , ओ तथा औ संयुक्त स्वर हैं।
ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर में लगनेवाले समय को इन शब्दों के उच्चारण से समझा जा सकता है।
Varn kya hota hai
 

(ग). प्लुत स्वर — 

जिस स्वर के उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी ज्यादा समय लगता है , उसे प्लुत स्वर कहते हैं। किसी को देर तक पुकारने में या नाटक – संवाद में इसका प्रयोग देखा जाता है। ऐसे , वैदिक मन्त्रों में इसका प्रयोग पाया जाता है। इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं। इसके लिए ( ३ ) का अंक लगाया जाता है।
जैसे — ओ३म् । 
 

(2). जाति के आधार पर स्वर के दो भेद हैं

(क). सजातीय स्वर या सवर्ण
(ख). विजातीय स्वर या असवर्ण
 

(क). सजातीय या सवर्ण — 

अ-आ , इ-ई , उ-ऊ आदि जोड़े आपस में सजातीय या सवर्ण कहे जाते हैं , क्योंकि ये एक ही उच्चारण – ढंग या उच्चारण – प्रयत्न से उच्चरित होते हैं। इनमें सिर्फ मात्रा का अंतर होता है।
 

(ख). विजातीय स्वर या असवर्ण — 

अ-इ , अ-ई , अ-उ , अ-ऊ , आ-इ , आ-ई आदि जोड़े आपस में विजातीय स्वर या असवर्ण हैं , क्योंकि ये दो उच्चारण-ढंग या उच्चारण – प्रयत्न से उच्चरित होते हैं।
 
 

स्वरों के उच्चारण

स्वरों के उच्चारण प्रायः चार प्रकार से होते हैं —
(1). निरनुनासिक
(2). अनुनासिक
(3). सानुस्वार
(4). विसर्गयुक्त
 
(1). निरनुनासिक — यदि स्वरों का उच्चारण सिर्फ मुख से किया जाए , तो ऐसे स्वरों को निरनुनासिक स्वर कहा जाएगा।
जैसे — अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ ।
 
(2). अनुनासिक — यदि स्वरों का उच्चारण मुख और नाक (नासिका) से किया जाए और उसमें कोमलता हो , तो ऐसे स्वरों को अनुनासिक स्वर कहा जाएगा।
जैसे — अँ, आँ, इँ ,ईं  / ईं, उँ, ऊँ, एँ, ऐं / ऐं, ओं/ओं
 
निम्नलिखित तालिका से ये बातें और स्पष्ट हो जाती हैं —
Varn ki paribhasa
 
नोट — ध्यान रखें कि अनुनासिक के लिए चन्द्रबिंदु (ँ ) का प्रयोग होता है। लेकिन , जब अनुनासिक स्वर का चिह्न (ँ ) शिरोरेखा पर लगता है , तो मजबूरन चन्द्रबिंदु (ँ ) के बदले बिंदु ( ◌ं ) दिया जाता है। ऐसा , लेखन- सुविधा हेतु किया जाता है। इस बिंदु ( ◌ं ) को आप पंचमाक्षर के लिए प्रयुक्त अनुस्वार न समझें।
इसे इस तरह समझें —
 
शिरोरेखा (सिर के ऊपर रेखा) पर चन्द्रबिंदु — सिँगार , यहीं , चलें , हैं।
लेखन सुविधा हेतु चन्द्रबिंदु के बदले बिंदु — सिंगार , यहीं , चलें , हैं।
 
(3). सानुस्वार — इसमें स्वरों के ऊपर अनुस्वार ( ◌ं ) का प्रयोग होता है। इसका उच्चारण नाक से होता है और उच्चारण में थोड़ी कठोरता होती है।
जैसे — अंग , अंगद , अंगूर , ईंट , कंकण आदि।
 
(4). विसर्गयुक्त — इसमें स्वरों के बाद विसर्ग ( : ) का प्रयोग होता है। इसका उच्चारण घोष ध्वनि — ‘ ह ‘ की तरह होता है। संस्कृत में इसका काफी प्रयोग होता है। तत्सम शब्दों में इसका प्रयोग आज भी देखा जाता है।
जैसे — अतः , स्वतः , प्रातः , पयःपान , मनःकामना आदि।
 
 
 

स्वर-मात्रा एवं स्वर-व्यंजन संयोग

” स्वर के संकेत – चिह्न को मात्रा कहते हैं । ” स्वर के दस संकेत-चिह्न हैं , लेकिन ‘अ’ का कोई संकेत-चिह्न या मात्रा नहीं होती है।
‘अ’ स्वर जब किसी व्यंजन से मिलता है , तो उसका हल चिह्न (् )  लुप्त हो जाता है।
जैसे — क् + अ क              ख् + अ ख ।
 
स्वर-व्यंजन संयोग (मेल) को निचे की तालिका से समझे —
Varn kise kahate hain
 

कुछ विशेष निर्देश : 

(1) — ये मात्राएँ व्यंजनों के पहले या बाद में , ऊपर या नीचे लगती हैं। लेकिन , ‘ र् ‘ व्यंजन के साथ जब उ ( ◌ु ) या ऊ ( ◌ू ) की मात्रा लगती है , तो यह ठीक बीच में लगायी जाती है।
जैसे —
 
र् + उ ( ◌ु )  = रु —  रुंज , रुंड , रुंदवाना , रुधना , रुकना , रुकवाना , रुकावट , रुक्मवती , रुक्मिणी , रुक्मी , रुक्ष , रुख , रुखाई , रुग्न , रुचना , रुचि , रुचिमान , रुचिवर्द्धक , रुज , रुझान , रुठ , रुतबा , रुदन , रुद्र , रुधिर , रुनझुन , रुपया , रुमाली , रुलाई , रुलाना , रुष्ट , रुस्तम , रुहेलखंड आदि।
 
र् + ऊ ( ◌ू ) = रू — रूई , रूख , रूखा , रूठ , रूठना , रूढ़ , रूढ़ि , रूनी , रूप , रूपक , रूपकार , रूपमय , रूपवती , रूपा , रू – ब – रू , रूम , रूमाल , रूल , रूस , रूहानी आदि।
 
(2) — किसी भी स्वर के साथ किसी दूसरे स्वर की मात्रा या अपनी मात्रा नहीं लगती।
जैसे — ओवरेस्ट , जैसा , ऐसा , अस , जुस , ऋण आदि लिखना गलत है।
 
(3) — ‘ श् ‘ और ‘ ह ‘ के साथ जब ‘ ऋ ‘ ( ◌ृ ) की मात्रा लगती है , तो इनका रूप होता है
 
श् + ऋ ( ◌ृ ) = शृ – शृगाल , शृंखला , शृंग , शृंगार । 
ह् + ऋ ( ◌ृ ) = हृ – हृदय , हृषीकेश , हृष्टपुष्ट ।
 
 

बारहखड़ी

किसी व्यंजन के साथ स्वरों की मात्राएँ (ऋ को छोड़कर) अनुस्वार और विसर्ग के साथ लिखने को बारहखड़ी कहते हैं।
जैसे — 
क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः । 
ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः ।
 
इसी प्रकार अन्य व्यंजनों की बारहखड़ी लिखी जाती है।
 
 

व्यंजन वर्ण किसे कहते हैं

व्यंजन वर्ण — जिन वर्णों का उच्चारण किसी अन्य (स्वर) के सहारे होता है , उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं
दूसरे शब्दों में — स्वर वर्ण की सहायता से जिस वर्ण का उच्चारण होता है , उसे व्यंजन वर्ण कहते हैं। 
 
जैसे — ‘ अ ‘ ( स्वर ) की सहायता से —- क , ख , ग आदि वर्गों का उच्चारण होता है , अतः क् , ख् , ग् , आदि व्यंजन वर्ण हैं। मूल व्यंजन वर्णों की कुल संख्या — 33 है।
 
क् ख् ग् घ् ङ् ।     च् छ् ज् झ् ञ् ।      ट् ठ् ड् ढ् ण् । 
त् थ् द् ध् न् ।       प् फ् ब् भ् म् ।     य् र् ल् व् श् ष् स् ह ।
 
हल् — संस्कृत में व्यंजन को हल कहते हैं। उपर्युक्त सभी व्यंजनों के नीचे जो एक छोटी तिरछी लकीर दिखायी गयी है , उसे भी हिन्दी में हल कहते हैं। हल लगे व्यंजन अर्थात् ‘ स्वररहित व्यंजन ‘ ही शुद्ध व्यंजन हैं। 
बोल-चाल की भाषा में ऐसे व्यंजन को ‘ आधा व्यंजन ‘ या ‘ आधा अक्षर ‘ भी कहा जाता है।
 
 

व्यंजन वर्ण के भेद (व्यंजन वर्ण कितने प्रकार के होते है)

सभी व्यंजनों को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया है।
(1). स्पर्श व्यंजन
(2). अंतःस्थ व्यंजन
(3). ऊष्म व्यंजन
 
(1). स्पर्श व्यंजन — जो व्यंजन कंठ , तालु , मूर्द्धा (तालु का ऊपरी भाग) , ओंठ , दाँत आदि के स्पर्श से बोले जाते हैं , उन्हें स्पर्श व्यंजन या स्पर्शी कहते हैं। इनकी संख्या 25 है।
इन्हें ‘ वर्गीय व्यंजन ‘ भी कहते हैं , क्योंकि ये पाँच वर्गों में बँटे हुए हैं। प्रत्येक वर्ग का नामकरण उनके प्रथम वर्ण के आधार पर किया गया है।
जैसे — 
• कवर्ग ( क , ख , ग , घ , ङ ) — इनका उच्चारण कंठ के स्पर्श से होता है।
• चवर्ग ( च , छ , ज , झ , ञ ) — इनका उच्चारण तालु के स्पर्श से होता है।
• टवर्ग ( ट , ठ , ड , ढ , ण ) — इनका उच्चारण मूर्द्धा के स्पर्श से होता है।
• तवर्ग ( त , थ , द , ध , न ) — इनका उच्चारण दंत के स्पर्श से होता है।
• पवर्ग ( प , फ , ब , भ , म ) — इनका उच्चारण ओष्ठ के स्पर्श से होता है।
 
(2). अंतःस्थ व्यंजन — य , र , ल और व अंतःस्थ व्यंजन हैं। इनकी संख्या 4 है। ये स्वर और व्यंजन के बीच स्थित (अंतःस्थ) हैं। इनका उच्चारण जीभ , तालु , दाँत और ओंठों के परस्पर सटने से होता है , लेकिन कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। कुछ वैयाकरण ‘ य ‘ और ‘ व ‘ को अर्द्धस्वर भी कहते हैं।
 
(3). ऊष्म व्यंजन — श , ष , स और ह ऊष्म व्यंजन हैं। इनका उच्चारण रगड़ या घर्षण से उत्पन्न ऊष्म (गर्म) वायु से होता है। इसलिए , इन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 4 है। इनके अलावा कुछ और व्यंजन ध्वनियाँ हैं जिनकी चर्चा आवश्यक है।
जैसे — 
(क) — संयुक्त व्यंजन या संयुक्ताक्षर
(ख) — तल बिंदुवाले व्यंजन
 

(क) — संयुक्त व्यंजन

परंपरा से क्ष , त्र , ज्ञ और श्र को हिन्दी वर्णमाला में स्थान दिया गया है , लेकिन ये मूल व्यंजन नहीं हैं। इनकी रचना दो व्यंजनों के मेल से हुई है , इसलिए इन्हें संयुक्त व्यंजन या संयुक्ताक्षर कहते हैं।
जैसे —
क् + ष = क्ष                ज् + ञ = ज्ञ
त् + र = त्र                   श् + र = श्र 
 

(ख) — तल बिंदुवाले व्यंजन

हिन्दी में कुछ ऐसे शब्द हैं जिनमें प्रयुक्त व्यंजन के नीचे बिंदु दिया जाता है। ऐसे व्यंजन तल बिंदुवाले व्यंजन कहलाते हैं।
 
जैसे — 
(1) हिन्दी में —   ड़ और ढ़।
(2) उर्दू (अरबी – फारसी) में — क , ख , ग , ज़ और फ़।
(3) अँगरेजी में — ज़ और फ़।
 
 
ड़ और ढ़ — ये हिन्दी के अपने व्यंजन हैं। संस्कृत में इनका प्रयोग नहीं होता है। ये टवर्गीय व्यंजन ‘ ड ‘ और ‘ ढ़ ‘ के नीचे बिंदु देने से बनते हैं। अतः , इन्हें द्विगुण व्यंजन भी कहते हैं। शब्दों में इनका प्रयोग प्रायः अक्षरों के बीच या अंत में होता है , शब्द के शुरू में नहीं।
जैसे — 
पढ़ना , ओढ़ना , लड़का , सड़क आदि । — (अक्षरों के बीच में) 
बाढ़ , आषाढ़ , कड़ी , हथकड़ी आदि । — (शब्द का अंतिम अक्षर) 
 
नोट — मूल शब्द के शुरू में ‘ ढ ‘ हमेशा बिंदुरहित आता है।
जैसे —
ढकनी , ढाल , ढाँचा , ढोंग , ढोलक , ढाई , ढकना आदि। अब , इन दोनों शब्दों को देखें — पढ़ाई , उढ़कना आदि।
 
क , ख , ग , ज़ और फ़ — हिन्दी में प्रयुक्त अरबी-फारसी के कुछ शब्दों में इनका प्रयोग ध्वनि – विशेष के लिए होता है।
जैसे — 
क़लम , ख़राब , गरीब , राज़ , बाज़ार , फ़ौरन आदि।
 
ज़ और फ़ — अँगरेजी भाषा से आए कुछ शब्दों में , ध्वनि-विशेष के लिए इनका प्रयोग होता है।
 
 

वर्णों के उच्चारण-स्थान

किसी भी वर्ण के उच्चारण के लिए मुख के विभिन्न भागों का सहारा लेना पड़ता है। मुख के जिस भाग  (अवयव) से वर्ण का उच्चारण किया जाता है , वह भाग उस वर्ण का उच्चारण-स्थान कहलाता है
 
उच्चारण-स्थान मुख्यतः छह हैं
(1). कंठ
(2). तालु
(3). मूर्द्धा (तालु का ऊपरी भाग)
(4). दंत (दाँत)
(5). ओष्ठ (ओंठ)
(6). नासिका (नाक)
 
नीचे के चित्र द्वारा इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है —
Varn kise kahate hain

 

उच्चारण-स्थान के आधार पर सभी वर्गो का वर्गीकारण किया गया है, जो निम्नलिखित है —

 
1). कंठ्य — जिनका उच्चारण कंठ से हो , वे कंठ्य वर्ण हैं।
जैसे — अ , आ , कवर्ग , विसर्ग तथा ह ।
 
2). तालव्य — जिनका उच्चारण तालु से हो , वे तालव्य वर्ण हैं।
जैसे — इ , ई , चवर्ग , य तथा श । 
 
3). मूर्धन्य — जिनका उच्चारण मूर्द्धा से हो , वे मूर्धन्य वर्ण हैं
जैसे — ऋ , टवर्ग , र तथा ष । 
 
4). दंत्य — जिनका उच्चारण दाँत से हो , वे दंत्य वर्ण हैं।
जैसे — तवर्ग , ल और स ।
 
5). ओष्ठ्य — जिनका उच्चारण ओंठ से हो , वे ओष्ठ्य वर्ण हैं । जैसे — उ , ऊ तथा पवर्ग । 
 
6). अनुनासिक — जिनका उच्चारण मुख और नाक से हो , वे अनुनासिक वर्ण हैं। 
जैसे — पंचमाक्षर (ङ , ञ , ण , न , म) और अनुस्वार-चन्द्रबिंदु। 
 
7). कंठ — तालव्य -जिनका उच्चारण कंठ और तालु से हो , वे कंठ – तालव्य वर्ण हैं।
जैसे — ए तथा ऐ । 
 
8). कंठौष्ठ्य — जिनका उच्चारण कंठ और ओष्ठ से हो , वे कंठौष्ठ्य वर्ण हैं।
जैसे — ओ तथा औ । 
 
9). दंतौष्ट्य — जिसका उच्चारण दंत और ओष्ठ से हो , वह दंतौष्ठ्य वर्ण है ।
जैसे — व । 
 
वर्गों के उच्चारण – स्थान और उनके नाम निम्नलिखित तालिका द्वारा समझें —
Varn kya hai
 
 

वर्ण , ध्वनि , लिपि और अक्षर

ध्वनि किसे कहते हैं

वर्ण और ध्वनि — कभी-कभी वर्ण के लिए ध्वनि या ध्वनि के लिए वर्ण शब्द का प्रयोग होता है , फिर भी दोनों में अंतर है। 
” मुँह के विभिन्न अवयवों या उच्चारण स्थान से जो वर्ण या वर्गों के समूह उच्चरित होते हैं , उन्हें ध्वनि कहते हैं। “
 
उच्चरित ध्वनि अर्थपूर्ण हो , तो वह व्याकरण की दृष्टि से ध्वनि है और यदि उसका कोई अर्थ न हो , तो वह ‘ निरर्थक ध्वनि ‘ कहलाती है।
 
लिखते समय वर्णों को जोड़कर शब्द बनाया जाता है और शब्दों से वाक्य। वर्णों के सही मेल से ‘ सार्थक शब्द ‘ बनते हैं , अगर वर्णों का सही मेल न हो , तो ‘ निरर्थक शब्द ‘ बनते हैं।
 
ध्वनि मुँह द्वारा उच्चरित होती है और कान द्वारा सुनी जाती है। वर्ण किसी संकेत द्वारा हाथ से लिखा जाता है या किसी यंत्र द्वारा छापा जाता है। स्पष्ट है कि मौखिक भाषा की सबसे छोटी इकाई ‘ ध्वनि ‘ है और लिखित भाषा की सबसे छोटी इकाई ‘ वर्ण ‘ । 
 
कभी – कभी ध्वनि समान होते हुए भी उसके अर्थ और लिपि में अंतर होता है । जैसे – हिन्दी की ‘ कम ‘ ध्वनि और अँगरेजी की ‘ come ‘ ध्वनि में ध्वनिगत समानता है , लेकिन अर्थ और लिपि में अंतर है ।
 
 

लिपि किसे कहते हैं

लिपि — भाषा के मुख्यतः दो रूप हैं – मौखिक और लिखित । मौखिक भाषा में ध्वनियाँ मुख द्वारा उच्चरित होती हैं। यदि उन उच्चरित ध्वनियों को किसी चिह्न या संकेत द्वारा मूर्त रूप दें , तो वह लिखित भाषा (लिखित रूप) ‘ लिपि ‘ कहलाएगी
 
अर्थात् , “ भाषा – ध्वनियों को लिखकर प्रकट करने हेतु निश्चित किए गये संकेतों या चिह्नों को लिपि कहते हैं । “
 
हिन्दी जिस लिपि में लिखी जाती है , उसे ‘ देवनागरी लिपि कहते हैं। इस लिपि में संस्कृत , मराठी और नेपाली भाषाएँ लिखी जाती हैं। पंजाबी भाषा ‘ गुरुमुखी ‘ में तथा अँगरेजी ‘ रोमन ‘ लिपि में लिखी जाती है। उर्दू और कश्मीरी की लिपि ‘ फारसी ‘ कहलाती है। संसार की अधिकांश लिपियाँ बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं।
जैसे — देवनागरी , गुरुमुखी , रोमन आदि। इसके विपरीत फारसी लिपि दाएँ से बाएँ लिखी जाती है।
चीनी – जापानी भाषाएँ तो ऊपर से नीचे लिखी जाती हैं।
 
यहाँ कुछ प्रमुख भाषाओं की लिपियों को दिखलाया गया है।
Varn in hindi

 

अक्षर किसे कहते हैं

अक्षर — कुछ वैयाकरण के अनुसार – जिसका क्षर न हो , वह ‘ अक्षर ‘ है।
जैसे — अ , आ , क् , ख् आदि। अर्थात् – वर्ण ही अक्षर है। आधुनिक वैयाकरण वर्ण और अक्षर में अंतर मानते हैं। उनका मत है कि स्वर या स्वरसहित व्यंजन ‘ अक्षर ‘ है। जैसे — अ , आ , क , ख आदि।
 
उनके अनुसार , ‘ लड़का ‘ शब्द में तीन अक्षर हैं — 
ल + इ + का । लेकिन , वर्गों की संख्या छह है — ल् + अ + इ + अ + क् + आ ।
 
इस तरह अक्षर चार प्रकार के होते हैं
(1) एक वर्णवाले अक्षर — सभी स्वर (अ , आ , ई आदि) 
(2) दो वर्णवाले अक्षर — क , ख , ग , की , खु , खै आदि
(3) तीन वर्णवाले अक्षर — क्ष , त्र , ज्ञ , श्र , त्त , क्त , त्व , च्च आदि।
(4) चार वर्णवाले अक्षर — ज्ज्व , त्स्य , स्थ्य आदि।
 

 

वर्ण की परिभाषा

उच्चारित ध्वनि संकटो को (वायु) ध्वनि कहा जाता है जबकी लिखित ध्वनि संकेतो को देवनागरी लिपि के अनुसार वर्ण कहा जाता है।
अथवा
वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं , जिसके खंड या टुकड़े नहीं हो सकते।
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