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वर्तनी किसे कहते हैं? परिभाषा | उदाहरण | Vartani Kise Kahate Hain
वर्तनी किसे कहतें है (vartani kise kahate hain)
वर्तनी की परिभाषा — ‘वर्तनी’ शब्द ‘वर्तन’ से बना है, अर्थात्-अनुवर्तन करना या पीछे-पीछे चलना। दूसरे शब्दों में, लिपि-चिह्नों के क्या रूप हों और उनका संयोजन कैसा हो, यह कार्य ‘वर्तनी’ का है। इसे अक्षरी, हिज्जे, स्पेलिंग या बंगला में ‘बनान’ भी कहते हैं। वर्तनी-संबंधी अशुद्धियों या समस्याओं के मुख्य दो कारण हैं —
(क) किसी शब्द का अशुद्ध उच्चारण करना या सुनना।
(ख) मत-भिन्नता के कारण विभिन्न समस्याएँ।
जैसे —
1) — यदि हम ‘श’ का उच्चारण ‘स’ की तरह करते हैं या सुनते हैं, तो निश्चित रूप से ‘अशोक’ शब्द को लिखते समय ‘असोक’ लिखेंगे। यह समस्या या अशुद्धि, गलत उच्चारण करने या सुनने के कारण है।
2) — कोई ‘गये-गयी’ लिखता है, तो कोई ‘गए-गई’। ‘पक्का’ शब्द को कोई ‘पक्का’ लिखता है, तो कोई ‘पक्का’। इस प्रकार की कई समस्याएँ हैं। ये समस्याएँ मत-भिन्नता के कारण हैं।
वर्तनी से सम्बद्ध विभिन्न समस्याओं एवं उनके निदान की चर्चा करने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर विचार करना होगा —
(1). व्यंजनों के संयुक्त रूप ।
(2). विभक्ति – चिह्न ।
(3). उपसर्ग और प्रत्ययवाले शब्द ।
(4). श्री/जी का प्रयोग ।
(5). संयुक्त क्रिया , सहायक क्रिया एवं अव्यय ।
(6). संयोजक – चिह्न ।
(7). तत्सम और विदेशज शब्द ।
(8). अनुस्वार और चन्द्रबिंदु ।
(9). ए/ये तथा ई/यी का प्रयोग ।
(10). की/कि — के लिखने में दुविधा ।
1) — व्यंजनों के संयुक्त रूप
(क) खड़ी पाईवाले व्यंजनों (ख , ग , घ , च , ज , ञ , ण , त , थ , ध , न , प , ब , म . य , ल , व , श , ष , स आदि) का संयुक्त रूप खड़ी पाई को हटाकर बनाएँ
जैसे — ख्याल , अच्छा , पुष्प , ज्वर , पत्थर , व्यक्ति आदि।
(ख) जिनमें खड़ी पाई (क , फ) बीच में है , उन्हें इस प्रकार लिखें — मक्का , चक्की , दफ्तर , रफ्तार , रक्त / रक्त आदि।
(ग) जिनमें खड़ी पाई (ङ , ट , ठ , ड , ढ , द , ह आदि) नहीं है , उनके नीचे हल दें।
जैसे — वाङ्मय , नाट्य , कंठ्य , अड्डा , विद्यालय , ब्रह्मा , चिह्न आदि।
(घ) ‘र’ की स्थिति कुछ अलग है। यदि ‘र्’ (स्वररहित अर्थात् , आधा ‘र्’) पहले हो और बाद में कोई व्यंजन हो , तो ‘र्’ उस व्यंजन के ऊपर दिया जाता है। इसे रेफ कहते हैं। जैसे —
धर्म ( ध + र् + म ) ।
शीर्षक ( शी + + ष + क ) ।
यदि व्यंजन के बाद कोई मात्रा हो , तो रेफ ‘ मात्रा के ऊपर लगता है।
जैसे — धर्मा , कर्मी , धर्मेन्द्र आदि
(i) यदि आधा व्यंजन (स्वररहित) के बाद पूरा ‘र’ (स्वरसहित) हो , तो पाईवाले व्यंजन में इसे ‘ प्र ‘ की तरह दिखलाया जाता है।
जैसे —
व्रत (व् + र + त) , क्रम , वज्र , सम्राट् आदि।
लेकिन , ‘श्’ और ‘त्’ के साथ इसका संयोग इस प्रकार होता है
त् + र = त्र — त्रस्त , त्रिवेणी , अस्त्र आदि।
श् + र = श्र — श्रवण , श्रेणी , श्री आदि।
(ii) बिना पाईवाले (ट् , ठ् , ड् , ह् आदि) व्यंजन के साथ पूरा ‘ र ‘ इस प्रकार जुड़ता है
ट्रक (ट् + र + क) , राष्ट्र , ड्रामा , ट्राम आदि।
लेकिन ‘ ह ‘ के साथ पूरा ‘ र ‘ इस प्रकार जुड़ता है
हस्व (ह् + र + स्व) , ह्रास , हाद , ह्रस्वता आदि।
(ङ) दो लगातार महाप्राण व्यंजनों का संयोग नहीं होता है।
जैसे — मख्खी , बध्धी , शुध्ध , मछ्छर – लिखना गलत है।
इन्हें ऐसे लिखें – मक्खी , बग्घी , शुद्ध , मच्छर।
(च) टवर्ग के पहले प्रायः ‘ ष ‘ का प्रयोग होता है।
जैसे — कष्ट , स्पष्ट , निष्ठा , काष्ठ , षडानन , षोड़शी , आषाढ़ , उष्ण , कृष्ण आदि।
(छ) ‘ ऋ ‘ या इसकी मात्रा ( ृ ) के बाद प्रायः ‘ ष ‘ का प्रयोग होता है।
जैसे — ऋषि , ऋषभ , ऋषभी , कृषि , वृषभ , वृष्टि , सृष्टि आदि। अपवाद : ऋश्य , ऋश्यकेतन , ऋश्यकेतु , ऋश्यद , ऋश्यमूक।
(ज) यदि किसी शब्द में ‘ श ‘ और ‘ ष ‘ एक साथ आएँ , तो पहले प्रायः ‘ श ‘ का प्रयोग होगा।
जैसे — शेष , विशेष , शोषण , शोषित , शीर्षक आदि। इसी प्रकार ‘ श ‘ और ‘ स ‘ एक साथ आएँ , तो ‘ श ‘ प्रायः पहले आता है। जैसे प्रशंसा , अनुशंसा , शासन , प्रशासन , शासक आदि।
2) — विभक्ति-चिह्न
(क) विभक्ति – चिह्न का प्रयोग संज्ञा से अलग , लेकिन सर्वनाम के साथ करें।
जैसे — कृष्ण ने , युद्ध में , रथ पर , अर्जुन के लिए , चक्र के द्वारा।
उसने , उनमें , मुझपर , आपके , आपकी , आपका , मुझसे।
(ख) अगर दो विभक्तियों का प्रयोग करना हो, तो पहली विभक्ति को सर्वनाम के साथ और दूसरी को अलग लिखें।
जैसे — उनमें से , मेरे लिए , उसके लिए , आपके द्वारा।
(ग) अगर सर्वनाम के रूप बड़े हों , तो विभक्ति/विभक्तियों को अलग लिखें।
जैसे — आपलोगों के , आपलोगों के द्वारा , उनलोगों में , उनलोगों में से।
(घ) यदि सर्वनाम और विभक्ति के बीच ‘ ही ‘ , ‘ भी ‘ , तक आदि अव्यय हों , तो विभक्ति को अलग लिखें।
जैसे — मुझ तक को , मेरे ही लिए , आप ही के लिए।
3) — उपसर्ग और प्रत्ययवाले शब्द
ऐसे शब्दों को एक साथ लिखें।
जैसे —
उपसर्गवाले शब्द — अधपका , प्रतिध्वनि , खुशहाल , कमसिन आदि।
प्रत्ययवाले शब्द — पढ़कर , पढ़ाकर , पढ़वाकर , दूधवाला , लकड़हारा आदि।
4) — श्री/जी का प्रयोग
आदरसूचक ‘ श्री ‘ एवं ‘ जी ‘ को शब्द के साथ लिखें । जैसे —
श्री — श्रीयुत , श्रीहीन , श्रीगणेश , श्रीकांत , धनश्री , राजश्री , पद्मश्री आदि।
जी — गुरुजी , माताजी , पिताजी , भाईजी , बहनजी , रामजी , कृष्णजी आदि। यदि नाम बड़े हों , तो ‘ जी ‘ को अलग लिखें।
जैसे — रामप्रकाश जी , कृष्णकुमार जी आदि।
5) — संयुक्त क्रिया, सहायक क्रिया एवं अव्यय
इन्हें अलग – अलग लिखें। जैसे —
(क) रो पड़ा , चला गया , खेल रहा है , पढ़ता आ रहा था , गाता हुआ जा रहा था।
(ख) अव्यय शब्द — यहाँ तक , वहाँ तक , रात भर , दिन भर , मुझ तक तो , दस रुपये मात्र आदि।
6) — संयोजक-चिह्न
यह दो शब्दों को जोड़ता है। इस चिह्न का प्रयोग निम्न लिखित परिस्थितियों में करें। जैसे —
(क) जब दोनों पद प्रधान हों — माता-पिता , भाई-बहन , लड़का-लड़की , राजा-रानी , सीता-राम , राधा-कृष्ण , भात-दाल , लोटा-डोरी , घर-द्वार आदि।
(ख) विलोम शब्दों में — झूठ-सच , अच्छा-बुरा , अमीर-गरीब , सुख-दुःख , स्वर्ग-नरक , लाभ-हानि , जन्म-मरण , यश-अपयश , जय-पराजय , शुभ-अशुभ आदि।
(ग) एकार्थक बोधक सहचर शब्दों में — कपड़ा-लत्ता , कूड़ा-कचरा , चमक-दमक , चाल-चलन , जी-जान , दीन-दुःखी , धूम-धाम , बाल-बच्चा , मार-पीट , मान-मर्यादा आदि।
(घ) एक शब्द सार्थक और दूसरा निरर्थक हो — चाय-वाय , पानी-वानी , उलटा-पुलटा , रोटी-वोटी , भात-वात , झूठ-मूठ , अनाप-शनाप आदि।
(ङ) पुनरुक्ति या द्विरुक्ति में — गाँव-गाँव , शहर-शहर , बस्ती-बस्ती , अपना-अपना , कोई-कोई , क्या-क्या , लाल-लाल , पीला-पीला , मीठे-मीठे , ऊपर-ऊपर , धीरे-धीरे , अरे-अरे , छि :-छिः , हाय-हाय आदि।
(च) दो विशेषण पदों में — एक-दो , दो-चार , दस-बीस , पहला-दूसरा , चौथा-पाँचवाँ आदि।
(छ) सा , से , सी , जैसा , जैसे आदि में — कम-से-कम , अधिक-से-अधिक , बहुत-से लोग , बहुत-सी बातें , चाँद-सा मुखड़ा , चाँद-सा चमकीला , चाँदी-सी चमक , आप-जैसा होनहार , सीता-जैसी नारी आदि।
(ज) जब दो शब्दों के बीच संबंधकारक के चिह्न (का , के , की) लुप्त हों — जैसे — राम-लीला , लीला-भूमि , मानव-जीवन , जीवन-दर्शन , शब्द-भेद , भेद-ज्ञान , ज्ञान-सागर , सागर-सम्राट् , संत-मत , मत-भिन्नता , लेखन-कला , कला-मंदिर आदि। उदाहरण —
ज्ञान-सागर — (ज्ञान का सागर / ज्ञान के सागर)
शब्द-भेद — (शब्दों के भेद / शब्द का भेद)
लेखन-कला — (लेखन की कला)
(झ) लेकिन — पदों , दुकानों , संस्थाओं , समितियों आदि के नाम बिना योजक-चिह्न के लिखें। जैसे —
उपकुलपति , भूतपूर्व सैनिक , पाटलिपुत्र , किताबघर , सोवियत संघ , नागरी प्रचारिणी सभा , बिहार दुग्ध सहकारी समिति आदि।
7) — (अ) तत्सम शब्द
(क) हिन्दी में बहुत सारे तत्सम शब्द प्रयुक्त होते हैं , उनमें कुछ शब्दों के अंत में हल् आता है। जैसे —
महान् , विद्वान् (विद्वान्) , चित् , दिक , जगत् , विद्युत् (विद्युत्) आदि।
यदि हल के बिना इन शब्दों को लिखा जाए , तो इन शब्दों की व्युत्पत्ति समझ में नहीं आएगी। साथ ही , संधि और छंद में भी कठिनाई उत्पन्न हो जाएगी , अतः हल हटाना उचित नहीं है।
(ख) द्वित्व का प्रयोग यथासंभव होना चाहिए। जैसे — सत्ता , पत्ता , कुत्ता , चक्का , अड्डा आदि। लेकिन , जिन शब्दों में अब द्वित्व का प्रयोग नहीं होता है , वहाँ इससे बचना चाहिए। जैसे — आवर्तन , परिवर्तन , वर्तमान , तत्व , महत्व , कर्ता आदि।
(ग) कुछ तत्सम शब्दों में विसर्ग ( : ) का प्रयोग होता है। जैसे — अतः , स्वतः , प्रातः , मूलतः , अंशतः , पयःपान , स्वान्तःसुखाय आदि। इनमें विसर्ग का प्रयोग अवश्य करें।
7) — (ब) विदेशज शब्द
(क) अरबी-फारसी और अँगरेजी के कुछ शब्दों के नीचे बिंदु , ध्वनि विशेष के लिए दिया जाता है। हालाँकि , वाक्य प्रयोग से ही उनका अर्थ स्पष्ट हो जाता है , अतः बिंदु देने की जरूरत नहीं है। उन्हें बिंदुरहित लिखें — राज , खैर , गरीब , कागज , कब्र , इज , जीरो , फास्ट , फेल आदि। हाँ , यदि शब्दों के बीच फर्क दिखलाना हो , तो बिंदु का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे — राज-राज़ , गज-गज़ आदि।
(ख) अँगरेजी के कुछ शब्दों के उच्चारण में औ-जैसी ध्वनि निकलती है , ध्वनि विशेष के लिए अर्द्धचन्द्र ( ) का प्रयोग करें। जैसे — ऑफिस , ऑफिसर , कॉलेज , नॉलेज , स्टॉप , स्पॉट आदि।
8) — अनुस्वार और चंद्रबिंदु
(क) पंचमाक्षर यदि अगले व्यंजन के साथ संयुक्त हो, तो अनुस्वार का प्रयोग करें। जैसे — अंक , मंजन , मंडन , बिंदु , खंभा आदि।
(ख) चंद्रबिंदुवाले शब्दों में, चंद्रबिंदु के बदले अनुस्वार का प्रयोग न करें। इससे अर्थ में बहुत अंतर आ जाता है। जैसे — हंस-हँस , अंगना-अँगना आदि में बहुत अंतर है।
नोट — सिर्फ शिरोरेखा पर चंद्रबिंदु न देकर उसके बदले बिंदु दें । जैसे चलें , में , मैं , हैं , सिंगार आदि।
(ग) बहुवचन के इन रूपों — लड़कियाँ , साड़ियाँ , तिथियाँ , नीतियाँ , मिठाइयाँ , कठिनाइयों , भाषाएँ , संज्ञाएँ आदि में चंद्रबिंदु दें , बिंदु नहीं।
(घ) अनुस्वारयुक्त तत्सम शब्दों का तद्भव रूप प्रायः चंद्रबिंदु के साथ आता है। जैसे — अंकुर-अँकरा , अंचल-आँचल , अंतर-अँतरा , अंधकार-अँधेरा , अंक-आँक , चंद्र-चाँद , झंप-झाँप , टंकण-टाँकना , दंत-दाँत , पंक-पाँक , पंच-पाँच , बंधन-बाँधना , बिंदु-बूंद , भंजन-भाँजना , मंद-माँद , रंग-राँगा आदि।
9) — ए/ये तथा ई/यी का प्रयोग
शब्दों के अंत में ए/अथवा ई/यी लिखा जाए , इसमें बहुत मतांतर है । कोई ‘गए-गई’ लिखता है, तो कोई ‘गये-गयी ‘। इसी प्रकार कोई नए-नई ‘ लिखता है, तो कोई ‘ नये-नयी ‘ । अगर कुछ नियमों का पालन किया जाए , तो इनके लिखने में एकरूपता आ सकती है। आप इन बातों का ध्यान रखें
(क) संज्ञा में ‘ ई ‘ का प्रयोग करें , लेकिन क्रिया या विशेषण में , ‘ य-ये-यी ‘ रूप रखें। जैसे —
संज्ञा — भाई , भौजाई , खटाई , मिठाई , लम्बाई , चौड़ाई , लिखाई , पढ़ाई , लड़ाई , खाई (गड्ढा) आदि।
क्रिया/विशेषण — लिया-लिये-ली , गया-गये-गयी , खाया-खाये-खायी , नया-नये-नयी आदि। उदाहरण —
मैंने रोटी खायी है। (खायी-क्रिया)
यह गहरी खाई (गड्ढा) है। (खाई-संज्ञा)
उन्होंने मुझे हिन्दी पढ़ायी। (पढ़ायी-क्रिया)
उनकी पढ़ाई क्यों रुकी? (पढ़ाई-संज्ञा)
यह नया/नयी है। (नया/नयी-विशेषण)
संक्षेप में याद रखें —
(i) याकारांत में — या-ये-यी। जैसे —
आया-आये-आयी , नया-नये-नयी , रुपया-रुपये आदि।
(ii) आकारांत में — आ-ए-ई। जैसे —
हुआ-हुए-हुई , भाषा-भाषाएँ-भाषाई , संज्ञा-संज्ञाएँ आदि।
(ख) अव्यय , विभक्ति , क्रिया से बने विशेषण , विधि क्रिया और भविष्यत्काल की क्रिया में ‘ ए/एँ ‘ का प्रयोग करें। जैसे — लिए , इसलिए , के लिए , चाहिए , दीजिए , कीजिए , आए बिना , गए बिना , आएँ , जाएँ , आइए , आइएगा , खाएगा , जाएगा , आएँगे , जाएँगी आदि।
उदाहरण —
आपने पाँच रुपये लिये। — (लिये-क्रिया)
आपके लिए मैं खड़ा हूँ। — (लिए-अव्यय)
वे पटना से कब आये? — (आये-क्रिया)
वह आए बिना चला गया। — (आए बिना-क्रिया से बने विशेषण)
आप झारखंड जरूर आएँ। — (आएँ-विधि क्रिया)
वे कल आएँगी।व — (आएँगी-भविष्यत्काल की क्रिया)
10) — ‘कि/की’ के लिखने में दुविधा
‘ कि ‘ एवं ‘ की ‘ में बहुत अंतर है । ‘ कि ‘ योजक है , जबकि ‘ की ‘ संबंधकारक की विभक्ति अथवा करना (क्रिया) का भूतकालिक रूप। वाक्य लिखने के क्रम में विद्यार्थियों को बड़ी दुविधा हो जाती है कि – ‘कि’ लिखें या ‘की’ । अतः , इनके प्रयोग को समझें —
(i) संबंधकारक के रूप में (की) —
(क) उसकी कलम अच्छी है ।
(ख) आपकी किताब नयी है ।
(ग) उनकी माताजी से मिलो ।
(घ) राम की गाय अच्छी है ।
(ङ) गाय की पूँछ लंबी है ।
(च) कलम की स्याही लाओ ।
ध्यान दें — ‘ की ‘ के द्वारा सर्वनाम – संज्ञा अथवा ‘ संज्ञा – संज्ञा ‘ का संबंध बतलाया गया है।)
(ii) क्रिया के रूप में (की) —
(क) उसने मेरी शिकायत की ।
(ख) आपने उसकी पिटाई की ।
(iii) योजक के रूप में (कि) —
(क) उसने कहा कि मैं पढ़ने जाऊँगा ।
(ख) यही कारण है कि वह खेलना नहीं चाहता ।
(ग) वह हमेशा कहता था कि आप मेरी मदद करें ।
(घ) ……….कि इस दवा में यह गुण है ।
(ड़) ……….कि उसने मुझे धोखा दिया ।
(ध्यान दें – ‘कि’ के द्वारा दो वाक्यों को जोड़ा गया है।)
नोट — इन शब्दों को इस प्रकार लिखें – जबकि , जोकि , क्योंकि , ताकि , हालाँकि , इसलिए कि जैसा कि आदि।
आज के इस हिन्दी व्याकरण के आर्टिकल मे हमने वर्तनी किसे कहतें है को विस्तार मे देखा, इस आर्टिकल से आपको vartani kise kahate hain और वर्तनी की परिभाषा को समझने मे काफी मदद मिली होगी। अगर आपके मन मे कोई सवाल है तो आप हमे नीचे कमेंट में पुछ सकते है और हमे उमीद है की हमारे द्वारा दी गई जानकारी से आपको वर्तनी के नियम को भी अच्छे से समझने मे मदद मिली होगी। इस आर्टिकल को आप अपने दोस्तो मे साथ शेयर जरुर करे।