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‘क्रिया’ किसे कहते हैं? परिभाषा, भेद एवं उदारहण
क्रिया किसे कहते हैं? क्रिया की परिभाषा (kriya kise kahate hain)
जिस शब्द से किसी कार्य का करना अथवा होना समझा जाय, उसे क्रिया कहते है। जैसे — वह पढ़ती है।
अथवा
जिस शब्द से किसी काम के करने या होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे — खाना , पीना , उठना , बैठना , हँसना , रोना , होना आदि।
क्रिया भी विकारी शब्द है। इसके रूप लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार बदलते रहते हैं। वाक्यों में इनका प्रयोग विभिन्न रूपों में होता है। जैसे —
खाना — खाता, खाती, खाते, खाया, खायी, खाये, खाऊँ, खाऊँगा, खाऊँगी, खाएँगे, खिलाना, खिलवाना आदि।
उदाहरण :
उसने भात खाया। (खाया — क्रिया)
मैंने रोटी खायी। (खायी — क्रिया)
क्रिया के विभिन्न रूप कैसे बनते हैं या क्रिया की उत्पत्ति कैसे होती है यह समझने के लिए धातु की जानकारी आवश्यक है।
धातु किसे कहते हैं
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे — आ, जा , खा , पी , पढ़, लिख , रो , हँस , उठ , बैठ , टहल आदि।
इन्हीं मूल रूपों में — ना, नी, ने, ता, ती, ते, या, यी, ये, ऊँ, गा, गी , गे आदि प्रत्यय लगने से क्रिया के विभिन्न रूप बनते हैं। जैसे —
ना (प्रत्यय) — आना, जाना, खाना, पीना, पढ़ना, लिखना आदि।
ता (प्रत्यय) — आता, जाता, खाता, पीता, पढ़ता, लिखता आदि।
ऊँ (प्रत्यय) — आऊँ, जाऊँ, खाऊँ, पीऊँ, पढूँ, लिखू आदि।
नोट — हिन्दी में क्रिया का सामान्य रूप मूल धातु में ‘ ना ‘ जोड़कर बनाया जाता है, जैसा कि आप ऊपर देख रहे हैं।
धातु के भेद
धातु के दो भेद होते हैं
(1) मूल धातु
(2) यौगिक धातु
1). मूल धातु — यह स्वतंत्र होता है, किसी दूसरे शब्द (पद) या प्रत्यय पर आश्रित नहीं होता। जैसे — आ, जा, खा, ले, लिख, पढ़, चल, दे, जग, उठ, बैठ आदि।
उदाहरण :
इधर आ। आम खा।
उधर मत जा। किताब पढ़।
स्पष्ट है कि यहाँ — आ, जा, खा और पढ़ धातुएँ किसी प्रत्यय या शब्द पर आश्रित नहीं हैं। इनका प्रयोग स्वतंत्र हुआ है।
2). यौगिक धातु — सामान्य भाषा में इसे क्रिया कहते हैं। यह स्वतंत्र नहीं होता है। मूल धातु में किसी दूसरी मूल धातु या अन्य प्रत्यय को जोड़ने से यौगिक धातु बनता है। जैसे — बैठना, जाना, बैठ जाना, हँसना, देना, हँस देना, जगना, जगाना, जगवाना, हथियाना, गरमाना, अपनाना आदि।
उदाहरण :
यौगिक धातु वह इधर आ रहा है। वह हँस रहा था।
तुम्हें उधर नहीं जाना है। हमलोग बैठ जाएँगे।
उपर्युक्त वाक्यों में — आ , जा , हँस , बैठ , क्रमशः रहा है , ना है , रहा था एवं जाएँगे पर आश्रित है।
यौगिक धातु तीन प्रकार से बनता है
(1) — मूल धातु और दूसरे मूल धातु के संयोग से जो यौगिक धातु बनता है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे —
मूल धातु + मूल धातु = यौगिक धातु
हँस + दे = हँस देना (संयुक्त क्रिया)
बैठ + जा = बैठ जाना (संयुक्त क्रिया)
चल + पड़ = चल पड़ना (संयुक्त क्रिया)
(2) — मूल धातु में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बनता है, वह अकर्मक या सकर्मक या प्रेरणार्थक क्रिया होती है। जैसे —
मूल धातु + प्रत्यय = यौगिक धातु
जग + ना = जगना (अकर्मक क्रिया)
जग + आना = जगाना (सकर्मक क्रिया)
जग + वाना = जगवाना (प्रेरणार्थक क्रिया)
(3) — संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बनता है, उसे नाम धातु कहते हैं। जैसे —
संज्ञा/सर्वनाम/विशेषण + प्रत्यय = यौगिक धातु
हाथ (संज्ञा) + इयाना = हथियाना (नाम धातु)
अपना (सर्वनाम) + ना = अपनाना (नाम धातु)
गरम (विशेषण) + आना = गरमाना (नाम धातु)
क्रिया के कार्य
क्रिया के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं
(1) गतिशीलता या स्थिरता का बोध कराना — क्रिया किसी व्यक्ति/वस्तु की गतिशीलता या स्थिरता का बोध कराती है। जैसे —
लड़के दौड़ रहे हैं। (गतिशीलता)
लड़कियाँ कूद रही हैं। (गतिशीलता)
मैं टहल रहा हूँ। (गतिशीलता)
पक्षी वृक्ष पर बैठे हैं। (स्थिरता)
कुत्ता सोया हुआ है। (स्थिरता)
घोड़ा मरा पड़ा है। (स्थिरता)
(2) किसी काम के करने या होने का बोध कराना — क्रिया इस बात का बोध कराती है कि कोई काम जान बूझकर किया जा रहा है या स्वतः हो रहा है। जैसे —
मैं किताब पढ़ रहा हूँ। (किये जाने का बोध)
हवा बह रही है। (स्वतः होने का बोध)
(3) समय का बोध कराना — क्रिया समय का भी बोध कराती है। जैसे —
मैं पढ़ रहा हूँ। (वर्तमान समय का बोध)
मैं पढ़ रहा था। (बीते समय का बोध)
मैं कल पढूंगा। (आनेवाले समय का बोध)
(4) शारीरिक स्थिति का बोध कराना — क्रिया से किसी की शारीरिक स्थिति का पता चलता है। जैसे —
वह तैर रहा है। मैं बैठा हूँ।
(5) मानसिक स्थिति का बोध कराना — क्रिया से मानसिक स्थिति का बोध होता है। जैसे —
श्याम रो रहा है। राम हँस रहा है।
क्रिया के भेद (kriya ke bhed)
क्रिया के मुख्यतः दो भेद हैं
(1). सकर्मक क्रिया (Transitive Verb)
(2). अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)
(1) — सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के साथ कर्म हो या कर्म के रहने की संभावना हो, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे — खाना, पीना, पढ़ना, लिखना, गाना, बजाना, मारना, पीटना आदि।
उदाहरण :
वह आम खाता है।
प्रश्न : वह क्या खाता है ?
उत्तर : वह आम खाता है।
यहाँ कर्म (आम) है या किसी-न-किसी कर्म (भात, रोटी आदि) के रहने की संभावना है, अतः ‘खाना’ सकर्मक क्रिया है।
(2) — अकर्मक
क्रियाजिस क्रिया के साथ कर्म न हो या किसी कर्म के रहने की संभावना न हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे — आना, जाना, हँसना, रोना, सोना, जगना, चलना, टहलना आदि।
उदाहरण :
वह रोता है।
प्रश्न : वह क्या रोता है ?
ऐसा न तो प्रश्न होगा और न ही इसका कुछ उत्तर।
यहाँ कर्म कुछ नहीं है और न किसी कर्म के रहने की संभावना है, अतः ‘रोना’ अकर्मक क्रिया है।
नोट — लेकिन, कुछ अकर्मक क्रियाओं — रोना, हँसना, सोना, जगना, टहलना आदि में प्रत्यय जोड़कर सकर्मक बनाया जाता है। जैसे —
रुलाना, हँसाना, सुलाना, जगाना, टहलाना आदि।
अकर्मक क्रिया + प्रत्यय = सकर्मक क्रिया
रो (ना) + लाना = रुलाना (वह बच्चे को रुलाता है।)
जग (ना) + आना = जगाना (वह बच्चे को जगाता है।)
प्रश्न : वह किसे रुलाता/जगाता है ?
उत्तर : वह बच्चे को रुलाता/जगाता।
स्पष्ट है कि रुलाना/जगाना सकर्मक क्रिया है, क्योंकि इसके साथ कर्म (बच्चा) या किसी-न-किसी कर्म (बच्ची, कुत्ता आदि) के रहने की संभावना है।
अब अकर्मक से सकर्मक बनी कुछ क्रियाओं को देखें
अकर्मक सकर्मक
चू-ना = चुलाना
जी-ना = जिलाना
कट-ना = काटना
टल-ना = टालना
रो-ना = रुलाना
मर-ना = मारना
सो-ना = सुलाना
लुट-ना = लूटना
क्रिया के अन्य रूप उदारहण सहित
क्रिया के कुछ और रूप हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है। ये हैं सहायक क्रिया, पूर्वकालिक क्रिया, प्रेरणार्थक क्रिया, द्विकर्मक क्रिया, क्रियार्थक क्रिया और विधि क्रिया।
सहायक क्रिया
मुख्य क्रिया की सहायता करनेवाली क्रिया को सहायक क्रिया कहते हैं। जैसे — हूँ , है , हैं , रहा , रही , रहे , था , थे , थी , थीं आदि।
उदाहरण :
मैं खा रहा हूँ। (रहा, हूँ — सहायक क्रिया)
वह पढ़ता है। ( है — सहायक क्रिया)
यहाँ मुख्य क्रिया ‘खाना’ और ‘पढ़ना’ है, जिसकी सहायता सहायक क्रिया कर रही है।
मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया के संबंध में कुछ और बातें हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है
(1) किसी वाक्य में सहायक क्रिया हो या न हो , एक मुख्य क्रिया अवश्य होती है। जैसे —
वह पटना गया। (जाना — मुख्य क्रिया)
उसने शुभम् से कहा। (कहना — मुख्य क्रिया)
(2) हूँ, है, हैं, था, थे, थी, थीं आदि सहायक क्रियाएँ हैं, लेकिन किसी वाक्य में कोई दूसरी क्रिया न हो, तो इनमें से कोई मुख्य क्रिया बन जाती है। जैसे —
मैं खाता हूँ। (हूँ — सहायक क्रिया)
मैं अच्छा हूँ। (हूँ — मुख्य क्रिया)
उसने खाया है। (है — सहायक क्रिया)
उसे एक कलम है। (है — मुख्य क्रिया)
(3) संयुक्त क्रिया में प्रथम क्रिया मुख्य क्रिया होती है और बाकी सहायता करनेवाली क्रिया — ‘सहायक क्रिया’।
जैसे —
वह बैठ गया था। (बैठ गया — संयुक्त क्रिया)
वह खा रहा है। (खा रहा — संयुक्त क्रिया)
यहाँ, ‘बैठ’ (बैठना) एवं ‘खा’ (खाना) मुख्य क्रियाएँ हैं।
‘गया’ (जाना), ‘था’ , ‘रहा’ (रहना) एवं ‘है’ — सहायक क्रियाएँ हैं।
नोट — गा, गे, गी को कुछ लोग भ्रमवश सहायक क्रिया समझते हैं, लेकिन ये सहायक क्रियाएँ नहीं हैं। ये प्रत्यय हैं। जैसे —
मैं खाऊँगा। (मुख्य क्रिया — खाना) (सहायक क्रिया — 0)
ऊपर प्रयुक्त ‘खाऊँगा’ क्रिया में मूल धातु ‘खा’ है और इसमें दो प्रत्यय जुड़े हुए हैं — ‘ऊँ’ एवं ‘गा’। अर्थात् —
खा (मूलधातु) + ऊँ (पहला प्रत्यय) + गा (दूसरा प्रत्यय) = खाऊँगा।
पूर्वकालिक क्रिया
जब कर्ता एक क्रिया को समाप्त कर उसी क्षण कोई दूसरी क्रिया आरंभ करता है, तो पहली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है। जैसे — खाकर, पीकर, पढ़कर, लिखकर, आकर, जाकर, सोकर, जगकर आदि।
उदाहरण :
मैं पढ़कर लिखने लगा। (पढ़कर — पूर्वकालिक क्रिया)
वह खाकर सोने गया। (खाकर — पूर्वकालिक क्रिया)
प्रेरणार्थक क्रिया
जिस क्रिया से यह ज्ञात हो कि कर्ता स्वयं कार्य न कर किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, तो उस क्रिया को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे —
माँ दाई से बच्चे को दूध पिलवाती है। (पिलवाना — प्रेरणार्थक क्रिया)
राम श्याम से पत्र लिखवाता है। (लिखवाना — प्रेरणार्थक क्रिया)
प्रेरणार्थक क्रिया भी दो तरह की होती है — प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया। अब मूल क्रिया (धातु) से बनी प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया की एक संक्षिप्त सूची को देखें
मूल क्रिया (धातु) प्रथम प्रेरणार्थक द्वितीय प्रेरणार्थक
उठ-ना उठाना उठवाना
उड़-ना उड़ाना उड़वाना
गिर-ना गिराना गिरवाना
चल-ना चलाना चलवाना
चढ़-ना चढ़ाना चढ़वाना
पढ़-ना पढ़ाना पढ़वाना
लिख-ना लिखाना लिखवाना
काट-ना कटाना कटवाना
जाग-ना जगाना जगवाना
जीत-ना जिताना जितवाना
नाच-ना नचाना नचवाना
घूम-ना घुमाना घुमवाना
भूल-ना भुलाना भुलवाना
लेट-ना लिटाना लिटवाना
बैठ-ना बिठाना बिठवाना
जोड़-ना जुड़ाना जुड़वाना
ओढ़-ना उढ़ाना उढ़वाना
खा-ना खिलाना खिलवाना
पी-ना पिलाना पिलवाना
दे-ना दिलाना दिलवाना
द्विकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे —
शिक्षक विद्यार्थी को पढ़ाते हैं। (एक कर्म — विद्यार्थी)
शिक्षक विद्यार्थी को हिन्दी पढ़ाते हैं। (दो कर्म — विद्यार्थी एवं हिन्दी)
प्रथम वाक्य में ‘पढ़ाना’ क्रिया का एक कर्म है, लेकिन दूसरे वाक्य में ‘पढ़ाना’ क्रिया के दो कर्म हैं, अतः द्वितीय वाक्य में प्रयुक्त ‘पढ़ाना’ क्रिया द्विकर्मक क्रिया कहलाएगी।
क्रियार्थक क्रिया
जिस क्रिया का प्रयोग मुख्य क्रिया के पहले संज्ञा के रूप में होता है उसे क्रियार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे —
टहलना स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। (क्रियार्थक क्रिया — टहलना)
वह टहलने गया। (क्रियार्थक क्रिया — टहलने)
वह टहलने के लिए गया है। (क्रियार्थक क्रिया — टहलने के लिए)
विधि क्रिया
क्रिया के जिस रूप से आज्ञा, अनुमति, अनुरोध, प्रार्थना, उपदेश आदि का बोध हो, उसे विधि क्रिया कहते हैं। जैसे —
आज्ञा : अन्दर आओ। (आओ — विधि क्रिया)
प्रार्थना : हे ईश्वर, मेरी सहायता करो। (करो — विधि क्रिया)
उपदेश : बड़ों का कहना मानो। (मानो — विधि क्रिया)
अनुरोध : कृपया मेरे यहाँ जरूर आइए। (आइए — विधि क्रिया)
क्रिया की परिभाषा
जिस शब्द से किसी कार्य का करना अथवा होना समझा जाय, उसे क्रिया कहते है। जैसे — वह पढ़ती है।