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‘प्रत्यय’ किसे कहते हैं ? परिभाषा, भेद और उदारहण
प्रत्यय किसे कहते हैं (pratyay kise kahate hain)
प्रत्यय की परिभाषा — जो शब्दांश किसी शब्द के पीछे जुड़कर नया शब्द बनाता हैं और मूल शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देता है, उसे प्रत्यय कहते हैं।
अथवा
प्रत्यय वह शब्दांश है, जो किसी धातु या अन्य शब्द के अंत में जुड़कर एक नया शब्द बनाता है।
जैसे —
लड़ (धातु) + आका (प्रत्यय) = लड़ाका।
मनुष्य (संज्ञा) + ता (प्रत्यय) = मनुष्यता।
पागल (विशेषण) + पन (प्रत्यय) = पागलपन।
स्पष्ट है कि ‘प्रत्यय’ धातु (क्रिया) या अन्य (संज्ञा, विशेषण आदि) शब्दों में जुड़ते हैं और फिर नये-नये शब्दों की रचना करते हैं। उपसर्ग और प्रत्यय में यही अंतर है कि जहाँ उपसर्ग शब्द के शुरू में जुड़ते हैं, वहाँ प्रत्यय शब्द के अंत में।
प्रत्यय के भेद (प्रत्यय के कितने प्रकार होते हैं)
प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं
(1) कृत् प्रत्यय (Agentive)
(2) तद्धित प्रत्यय (Nominal)
कृत् प्रत्यय किसे कहते हैं
कृत् प्रत्यय — कृत् प्रत्यय क्रिया की धातु के पीछे जोड़ा जाता है, कृत् प्रत्यय से बने हुए शब्द को कृदंत कहते है
अथवा
धातु में जुड़नेवाले प्रत्यय को ‘कृत् प्रत्यय’ कहते हैं और इनसे बने शब्द को ‘कृदंत’ । जैसे —
लड़ + आका (कृत् प्रत्यय) = लड़ाका (कृदंत)
चाट + नी (कृत् प्रत्यय) = चटनी (कृदंत)
स्पष्ट है कि कृत् प्रत्ययों के जुड़ने से संज्ञा या विशेषण शब्दों की रचना होती है।
सरलता से समझने के लिए इन्हें चार भागों में बाँटा जा सकता है
(1) कर्तृवाचक
(2) कर्मवाचक
(3) करणवाचक
(4) भाववाचक
(1) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय
जिन प्रत्ययों के जुड़ने से बननेवाले शब्द क्रिया के करनेवाले कर्ता का बोध कराते हैं, उन्हें कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय कहते हैं। ये है —
अंकू, अ, अक, अक्कड़, आऊ, आक, आका, आकू, आड़ी, आलू, इयल, इया, उक, ऊ, एरा, ओड़, ओड़ा, ओर, टा, ता, न, लू, वाला, वैया, हार आदि। जैसे —
धातु प्रत्यय शब्द(कृदंत) क्रिया का कर्ता
उड़ अंकू उड़कू जो उड़ता है
भूल अक्कड़ भुलक्कड़ जो भुलता है
खा आऊ खाऊ जो खाता है
खेल आड़ी खेलाड़ी जो खेलता है
स्पष्ट है कि — अंकू, अक्क्ड़, खाऊ, खेलाड़ी प्रत्ययों के धातु में जुड़ने से जो शब्द बने हैं, उनका अर्थ है– क्रिया को करनेवाला। इसलिए ऐसे प्रत्ययों को कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय कहते हैं।
(2) कर्मवाचक कृत् प्रत्यय
जिन प्रत्ययों के जुड़ने से बननेवाले शब्द क्रिया के कर्म का बोध कराते हैं, उन्हें कर्मवाचक कृत् प्रत्यय कहते हैं। ये हैं — अनीय, औना, ण्यत् , तव्य, त्र, ना, नी, य आदि। जैसे —
धातु प्रत्यय शब्द(कृदंत) क्रिया का कर्ता
स्मृ अनीय स्मरणीय जिसे स्मरण किया जाए
खेल औना खिलौना जिसे खेला जाए
गा ना गाना जिसे गाया जाए
कृ तव्य कर्तव्य जिसे किया जाए
स्पष्ट है कि — अनीय, औना, ना आदि प्रत्ययों के धातु में जुड़ने से जो शब्द बने हैं — वे ‘कर्म’ के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। अतः, ऐसे प्रत्यय कर्मवाचक कृत् प्रत्यय कहलाते हैं।
(3) करणवाचक कृत् प्रत्यय
जिन प्रत्ययों के जुड़ने से बननेवाले शब्द क्रिया के साधन (करण) का बोध कराते हैं, उन्हें करणवाचक कृत् प्रत्यय कहते हैं। ये हैं — अन, आ, आनी, औटी, इत्र, ई, ऊ, न, ना, नी आदि। जैसे —
धातु प्रत्यय शब्द(कृदंत) क्रिया का कर्ता
चर् अन चरण जिससे चला जाए
कस औटी कसौटी जिससे कसा जाए
रेत ई रेती जिससे रेता जाए
झाड़ ऊ झाडू जिससे झाड़ा जाए
स्पष्ट है कि — अन, औटी, ई, ऊ प्रत्ययों के धातु में जुड़ने से जो शब्द बने हैं — वे ‘करण’ के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। अतः, ऐसे प्रत्यय करणवाचक कृत् प्रत्यय कहलाते हैं।
(4) भाववाचक कृत् प्रत्यय
जिन प्रत्ययों के जुड़ने से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं, उन्हें भाववाचक कृत् प्रत्यय कहते हैं। ये हैं — अंत , अ , आ , आई , आन, आप , आपा , आव , आवट , आवा , आहट , औता , औती , औनी , औवल , ई , क , त , ति , ती , न , नी आदि।
धातु प्रत्यय शब्द(कृदंत) क्रिया की प्रक्रिया/भाव
चढ़ आई चढ़ाई चढ़ने की क्रिया/भाव
पूज आपा पुजापा पूजने की क्रिया/माव
चिल्ल आहट चिल्लाहट चिल्लाने की क्रिया/भाव
हँस ई हँसी हँसने की क्रिया/भाव
स्पष्ट है कि — आई, आपा , आहट आदि प्रत्ययों के जुड़ने से जो शब्द बने हैं — उनसे क्रिया की प्रक्रिया या भाव व्यक्त होते हैं। दूसरे शब्दों में, इनसे भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
तद्धित प्रत्यय किसे कहते हैं
तद्धित प्रत्यय — धातुओं को छोड़कर अन्य दूसरे शब्दों (संज्ञा, विशेषण आदि) में जुड़नेवाले प्रत्ययों को ‘तद्धित प्रत्यय’ एवं उनसे बननेवाले शब्दों को ‘तद्धितांत’ कहा जाता है। जैसे —
राष्ट्र (संज्ञा) + ईय (तद्धित प्रत्यय) = राष्ट्रीय (विशेषण) — तद्धितांत।
लघु (विशेषण) + अ (तद्धित प्रत्यय) = लाघव (संज्ञा) — तद्धितांत।
पीछे (अव्यय) + ला (तद्धित प्रत्यय) = पिछला (विशेषण म) — तद्धितांत।
स्पष्ट है कि तद्धित प्रत्यय — संज्ञा, विशेषण आदि शब्दों में लगते हैं और प्रायः संज्ञा या विशेषण बनाते हैं। दूसरी बात, कृत् प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय में यही अंतर है कि जहाँ कृत् प्रत्यय सिर्फ धातुओं में लगते हैं, वहाँ तद्धित प्रत्यय धातुओं को छोड़कर संज्ञा, विशेषण आदि शब्दों में लगते हैं।
तद्धित प्रत्यय के भेद
सभी तद्धित प्रत्ययों को चार भागों में बाँटा जा सकता है
(1) संज्ञा से संज्ञा बनानेवाले तद्धित प्रत्यय
(2) विशेषण से संज्ञा बनानेवाले तद्धित प्रत्यय
(3) संज्ञा से विशेषण बनानेवाले तद्धित प्रत्यय
(4) क्रियाविशेषण से विशेषण बनानेवाले तद्धित प्रत्यय
(1) संज्ञा से संज्ञा
बनानेवाले तद्धित प्रत्यय भी चार प्रकार के होते हैं
(क) लघुतावाचक
(ख) भाववाचक
(ग) पेशा या जातिवाचक
(घ) संबंधवाचक या अपत्यवाचक
(क) लघुतावाचक तद्धित प्रत्यय — इनसे छोटेपन या प्यार-दुलार का बोध होता है। ये प्रत्यय हैं — इया, ई, डा, री आदि। जैसे —
शब्द (संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (संज्ञा)
खाट, बेटी इया खटिया, बिटिया
घंटा, रस्सा ई घंटी, रस्सी
दुःख, मुख ड़ा दुखड़ा, मुखड़ा
(ख) भाववाचक तद्धित प्रत्यय — इनसे भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। ये प्रत्यय हैं — आई, इमा, ई, त, ता, त्व, पन, पा, स आदि। जैसे –
शब्द (संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (संज्ञा)
पंडित आई पंडिताई
खेती, दुश्मनी ई खेती, दुश्मनी
पुरुष, मनुष्य त्व पुरुषत्व, मनुष्यत्व
(ग) पेशा या जातिवाचक तद्धित प्रत्यय — इससे जीविका चलानेवाले का बोध होता है। ये प्रत्यय हैं — आर, एरा, क, कार, गर, दार, वाला, वान, हारा आदि। जैसे —
शब्द (संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (संज्ञा)
लोहा, सोना आर लोहार (लुहार), सोनार (सुनार)
चित्र, साँप एरा चितेरा, सँपेरा
लिपि, लेख क लिपिक, लेखक
(घ) संबंधवाचक या अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय — इन प्रत्ययों से बने शब्द संतान (अपत्य) के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। वैदिक युग में ऐसे शब्दों का बहुत प्रचलन था, लेकिन ऐसे शब्द अब नहीं बन रहे हैं। ये प्रत्यय हैं — अ , इ , एय आदि। जैसे —
शब्द (संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (संज्ञा)
वसुदेव अ वासुदेव (वसुदेव की संतान)
दाशरथि इ दाशरथि (दशरथ की संतान)
कुन्ती एय कौन्तेय (कुन्ती की संतान)
कुछ और शब्द हैं —
रघु – राघव, पाण्डु – पाण्डव; पृथा — पार्थ; सुमित्रा – सौमित्र, विनता – वैनतेय आदि।
(2) विशेषण से संज्ञा
कुछ प्रत्यय ऐसे हैं , जो विशेषण शब्दों में लगकर भाववाचक संज्ञाएँ बनाते हैं। ऐसे भाववाचक प्रत्यय हैं — आई, आस, आरुट, ई, ता, त्व, पन, पा आदि।
शब्द (विशेषण) प्रत्यय तद्धितांत रूप (संज्ञा)
अच्छा, बुरा आई अच्छाई, बुराई
खुश, गरिब ई खुशी, गरीबी
लघु, शुद्ध ता लघुता, शुद्धता
(3) संज्ञा से विशेषण
बनानेवाले प्रत्यय चार प्रकार के होते हैं —
(क) गुणवाचक
(ख) स्थानवाचक
(ग) रिश्ताबोधक
(घ) संबंधवाचक
(क) गुणवाचक तद्धित प्रत्यय — इनसे गुण, धर्म आदि बोध करानेवाले शब्द बनते हैं। ये प्रत्यय हैं — आ, ई, ईन, ईला आदि।
जैसे —
शब्द (संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (विशेषण)
भूख, प्यास आ भूखा, प्यासा
ऊन, गुलाब ई ऊनी, गुलाबी
नमक, शौक ईन नमकीन, शौकीन
काँटा, गाँठ इला काँटीला, गाँठीला
(ख) स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय — इन प्रत्ययों के लगने से स्थान से सम्बद्ध व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है। ये प्रत्यय हैं — इया, ई, ऊ, एलू आदि। जैसे —
शब्द (संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (विशेषण)
कलकत्ता, पटना इया कलकतिया, पटनिया
लखनऊ, जापान ई लखनवी, जापानी
बाजार ऊ बाजारू
घर एलू घरेलू
(ग) रिश्ताबोधक तद्धित प्रत्यय — इन प्रत्ययों के लगने से किसी-न-किसी रिश्ते का बोध होता है। जैसे —
शब्द (संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (विशेषण)
चाचा एरा चचेरा (चाचा से उत्पन्न)
मामा एरा ममेरा (मामा से उत्पन्न)
मौसा एरा मौसेरा (मौसा से उत्पन्न)
फूफा एरा फुफेरा (फूफा से उत्पन्न)
(घ) संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय — इन प्रत्ययों के लगने से व्यक्ति या वस्तु से संबंधित कुछ-न-कुछ संबंध ज्ञात होता है। ये प्रत्यय हैं — अ, आना, इक आदि।
शब्द (संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (विशेषण)
शिव, शक्ति अ शैव, शाक्त
साल, मर्द आना सालाना, मर्दाना
धर्म, नीति इक धार्मिक, नैतिक
(4) क्रियाविशेषण से विशेषण
कुछ प्रत्यय क्रियाविशेषण में लगकर विशेषण भी बनाते हैं। जैसे —
शब्द (क्रियाविशेषण) प्रत्यय तद्धितांत रूप (विशेषण)
आगे, पीछे, नीचे ला अगला, पिछला, निचला