मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य, गुण, दोष
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मुस्लिम कालीन शिक्षा :-
भारतीय इतिहास में 800 ईस्वी से 1757 ईस्वी के बीच के समय को मध्य काल या मुस्लिम काल के नाम से पुकारा जाता है।
इस समय को अंधकार युग भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय के दौरान भारतीय समाज में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई।
मुस्लिम शासक यहां अपना धर्म एवं संस्कृति लेकर आए। भारत पर शासन के लिए इन्होंने धर्म तथा संस्कृति का प्रचार प्रसार किया।
इन्होंने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जिस शिक्षा का विकास किया उसे मुस्लिम शिक्षा प्रणाली कहा जाता है।
यह शिक्षा इस्लाम धर्म पर आधारित थी। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद थे। इनका पवित्र ग्रंथ कुरान है।
मुस्लिम धर्म के अनुयाई निम्न पांच कार्यों को अनिवार्य रूप से करते हैं।
(1).प्रतिदिन पांच बार नमाज पढ़ना।
(2).कलमा पढ़ना।
(3).रमजान के माह में रोजा रखना।
(4).जकात (वार्षिक आय का 4वां हिस्सा दान में देना)।
(5).हज करना (जीवन में कम से कम एक बार मक्का से मदीना तक की धार्मिक यात्रा करना)।
शिक्षा के प्रति मुस्लिम शासकों में विरोधी दृष्टिकोण था, अतः मुस्लिम काल की शिक्षा के उद्देश्य तथा आदर्शों में एकरूपता दिखाई नहीं पड़ती है।
कुछ शासक उदार थे तथा कुछ अत्यंत दुराग्रही और अनुदार थे।
इस्लाम धर्म के सच्चे अनुयाई होने के कारण इन शासकों ने शिक्षा के कुछ ऐसे उद्देश्य निर्धारित किए जो धर्म के प्रचार में सहायक थे और इनमें एकरूपता दृष्टिगोचर होती थी।
मुस्लिम काल के समय शिक्षा के अर्थ को छोटे रूप में ही स्वीकार किया जाता है।
अतः उस काल मे धार्मिक शिक्षा पर ही अत्यधिक बल दिया जाता था और सभी के लिए इसे महत्वपूर्ण माना गया था।
धर्म को सर्वोपरी स्थान देते हुए मुस्लिम काल में धार्मिक शिक्षा एवं धार्मिक साम्राज्य के विस्तार को ही महत्व दिया जाता था।
इस्लामी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रचार करना था।
गौण उद्देश्यों में इस्लामी संस्कृति का विस्तार करना, मुस्लिम शासन को सुदृढ़ करना तथा सांसारिक ऐश्वर्य की प्राप्ति करना था।
मुस्लिम कालीन शिक्षा व्यवस्था:-
मुस्लिम कालीन शिक्षा प्राथमिक तथा उच्च दो रूपों में विभक्त थी।
(1).प्राथमिक शिक्षा।
(2).उच्च शिक्षा।
प्राथमिक स्तर की पाठ्यचर्या पर लिखने पढ़ने पर खास जोर था तथा समझ के लिए शेर दावे की पुस्तकें गुलिस्ता एवं दोस्तों पढ़ाई जाती थी।
इसके अलावा कई कुरान शरीफ की आयतें बिना समझे रट्टा मनाई जाती थी जो आगे चलकर की शिक्षा प्रणाली के प्रमुख दोष के रूप में आयीं।
(1). प्राथमिक शिक्षा:-
मुस्लिम शिक्षा के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा के मुख्य संस्थाएं थी- मकतब, खानकाहें,दरगाह, कुरान स्कूल, अरबी स्कूल आदि।
प्राथमिक शिक्षा का आरंभ बिस्मिल्लाह रस्म के पश्चात होता था।
बालक के 4 वर्ष, 4 माह, 4 दिन की उम्र में इस रस्म की अदायगी मौलवी तथा कुरान शरीफ की आयतें पढकर की जाती थी।
इस काल में मकतब मुख्य शिक्षा के केंद्र थे।
प्राथमिक शिक्षा में मकतब मुख्य सार्वजनिक शिक्षा संस्था थी।शेष संस्थाओ में केवल मुस्लिम छात्र ही शिक्षा प्राप्त कर सकते थे।
मकतब शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी भाषा के कुतुब शब्द से हुई है जिसका अर्थ है पढ़ना, लिखना या किताब।
मकतब में सभी धर्मों के बालकों को शिक्षा दी जाती थी।
प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत अरबी, व्याकरण, गद्य साहित्य, गणित, पढ़ना, लिखना, पत्र व्यवहार के साथ साथ लैला मजनू की तथा युसुफ जुले खां की कहानियां तथा सिकन्दरनामा पढाया जाता था।
नैतिक भाषा प्रदान करने के लिए ‘गुलिस्तां’ ‘बोस्तां’ आदि पढाये जाते थे।
प्राथमिक शिक्षा के अन्य केंद्र के रूप में खानकाहें तथा दरगाहें (सिर्फ मुस्लिम धर्म के बालकों के लिए) थी।
मकतबों का प्रबंधन मौलवी किया करते थे।
(2).उच्च शिक्षा:-
उच्च शिक्षा के केंद्र के रूप में मदरसों को जाना जाता था।
मदरसा शब्द की उत्पत्ति ‘दरस’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है बोलना या भाषण करना।
मुस्लिम काल में शिक्षा देने का माध्यम सदैव यही रहा हैं अधिकतर भाषण के माध्यम से ही उस समय शिक्षा प्रदान की जाती थी।मदरसों में मुख्यतः लौकिक तथा धार्मिक विषय पढाये जाते थे।
यह मदरसे बड़े-बड़े शहरों में थे- आगरा,अजमेर, लाहौर मुल्तान, सियालकोट, लखनऊ,जौनपुर तथा मुर्शिदाबाद के मदरसे बहुत प्रसिद्ध हुए।
अबुल फजल ने आईने अकबरी में लिखा है कि मदरसों में धार्मिक और अलौकिक विषयों की शिक्षा दी जाती है।
लौकिक विषयों के अन्तर्गत इतिहास, भूगोल, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, सरियत कानून, ज्योतिष आदि थे।धार्मिक विषय के अंतर्गत कुरान और हदीस पढाये जाते थे।
मकतब की वित्तीय व्यवस्था स्थानीय लोगों के द्वारा की जाती थी, जबकि मदरसों की वित्तीय व्यवस्था शासकीय सहायता से संचालित होती थी।
इस्लामी शिक्षा के समय गुरु तथा शिष्य के सम्बन्ध अच्छे थे।इस्लामी शिक्षा में छात्र जीवन विलासिता पूर्ण था।
मदरसों में छात्रों के लिए छात्रावास की व्यवस्था थी, जिसमें तत्कालीन सभी भौतिक सुख सुविधाओं का समावेश किया गया था।
मुस्लिम कालीन शिक्षा में धार्मिक शिक्षा को ही प्रथम स्थान दिया गया था। जिस कारण मस्जिदों के आस-पास ही मदरसों का निर्माण करवाया जाता था।
मकतब मस्जिदों से जुड़े रहते थे तथा मौलबी ही इसमें अध्यापक होते थे।
उस समय की शिक्षा राज्य एवं मुस्लिम बादशाहों के अधीन थी, वो ही शिक्षा के कार्यक्रम के लिए आर्थिक सहायता मुहैया करवाते थे।
उस काल में शिक्षा मुख्यतः भाषण के आधार पर ही दी जाती थी। उस काल मे मदरसों में खान-पान की व्यवस्था के साथ-साथ निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती थी।
मुस्लिम काल मे शिक्षा दो आधार के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती थी –
धार्मिक तथा अलौकिक में बांटा जाता था।
धार्मिक शिक्षा के अन्तर्गत कुरान हदीस (परम्पराएँ) तथा फिक (धर्मशास्त्र) का अध्ययन छात्रों को कराया जाता था।
लौकिक शिक्षा के अंतर्गत इतिहास, भूगोल, गणित, ज्योतिष शास्त्र ,यूनानी चिकित्सा व्याकरण, तर्कशास्त्र ,कानून तथा कृषि आदि विषयों का विस्तृत ज्ञान प्रदान किया जाता था।
पाठ्यक्रम:-
पाठ्यक्रम में दिए जाने वाले प्रारंभिक शिक्षा के अंतर्गत छात्रों को लिखना पढ़ना, पत्र व्यवहार, साधारण गणित, अरबी, फारसी की शिक्षा देकर तथा उनमें जीविकोपार्जन की क्षमता का विकास किया जाता था।
इस्लाम धर्म का ज्ञान देकर तथा कुरान को कंठस्थ करने पर छात्रों को धार्मिक और नैतिक आचरण से संबंधित प्रवृत्ति का विकास किया जाता था।
शिक्षण विधि: –
इस काल में शिक्षा मौखिक दी जाती थी रटन्त एवं स्मरण पर अधिक बल दिया जाता था।
शिक्षक प्रायः व्याख्यान प्रश्नोत्तर व वाद-विवाद विधियों की सहायता से शिक्षण कार्य करते थे।
बौद्ध काल की तरह मुस्लिम काल में मानीटर प्रणाली प्रचलित थी अध्यापक की अनुपस्थिति में बड़ी कक्षा के छात्र छोटे को पढ़ाते थे।
राज दरबार में बड़े विषयों पर शास्त्रार्थ भी होता था। शिक्षा का माध्यम अरबी एवं फारसी था।
शिल्पकला के छात्र करके सीखने के सिद्धान्त का पालन करते थे।
व्यवसायिक शिक्षा :-
मुस्लिम काल में शासकों द्वारा हस्तकला, ललित कला और वास्तुकला जैसे व्यवसायिक शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जाता था।
मुस्लिम काल में नक्काशी, दस्तकारी, पच्चीकारी, हाथी दांत, मलमल आदि कला कौशल से संबंधित कार्य भी उच्च कोटि के किए जाते थे।
इसलिए इन कला मे दक्ष कारीगरों के साथ काम करके छात्र इन कलाओं का परीक्षण करते थे।
सैनिक शिक्षा :-
मुस्लिम काल में शासकों को अपने शासन की रक्षा के लिए निरंतर युद्ध करने पड़ते थे, इसलिए इस काल में सैनिक शिक्षा का भी पर्याप्त विकास हुआ।छात्रों को निपुण योद्धाओं के द्वारा तीरंदाजी ,घुड़सवारी ,युद्ध संचालन तथा अस्त्र शस्त्रों का प्रशिक्षण दिया जाता था।
शासन, दंड तथा पुरस्कार :-
मुस्लिम काल में छात्र अत्यधिक अनुशासित रहते थे।
नैतिक व्यवहार एक शिष्टाचार आत्मानुशासन और विनयसीलता सभी छात्रों के लिए अनिवार्य था।
अनैतिक आचरण करने पर, झूठ बोलने पर, दैनिक पाठ याद न करने पर और अशिष्ट आचरण करने पर छात्रों को कठोर शारीरिक दंड दिया जाता था।
शिक्षक छात्रों को अपनी इच्छा अनुसार दंड देते थे, कोड़े लगाने उठक बैठक कराने, खड़ा करने तथा मुर्गा बनाने जैसे दंड दिए जाते थे।
उसे अयोग्य तथा चरित्रवान छात्रों को पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया जाता था कुछ शासक सम्मानित तथा धनी नागरिक योग्य छात्रों को पुरस्कार प्रदान करते थे।
स्त्री शिक्षा:-
मुस्लिम काल में स्त्री शिक्षा उपेक्षित थी।
मुस्लिम काल में महिलाओं में पर्दा प्रथा का प्रचलन होने के कारण स्त्री शिक्षा का विकास बहुत कम था।
कम आयु की लड़कियां मतकबों में जाकर प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ ग्रहण कर लेती थी, लेकिन उच्च शिक्षा घर पर ही ग्रहण करने की व्यवस्था थी।
इसलिए उच्च शिक्षा केवल सही तथा धनी परिवारों तक ही सीमित थी।
उपाधियां :-
मुस्लिम काल में शिक्षा समाप्ति के पश्चात छात्रों को उपाधियां प्रदान की जाती थी।
शिक्षा में विभिन्न प्रकार की उपाधियां दी जाती थी।
1.इस्लाम धर्म में निपुण “आमिल”।
2.अरबी फारसी साहित्य में निपुण “काबिल”।
3.तर्क शास्त्र में निपुण “फाजिल”।
4.गणित में निपुण “रियाजी”।
मुस्लिम काल में शिक्षा चलाने के लिए बादशाह मदरसों को सहायता प्रदान करते थे,
वो इसे पवित्र मानते थे और अपना धर्म मानकर मदरसों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करते थे।
मुस्लिम काल में शिक्षा के केन्द्र——-दिल्ली,फिरोजाबाद,बदायू,आगरा,फतेहपुर सीकरी,जौनपुर,बीदर और मालवा थे।
निशुल्क शिक्षा:-
इस काल में छात्रों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था।शिक्षा निशुल्क प्रदान की जाती थी।
अध्यापक छात्र संबंध:-
मुस्लिम काल में प्राचीन काल की तरह छात्र एवं अध्यापक में घनिष्ठ संबंध होते थे।
शिक्षक को समाज में अत्यन्त सम्माननीय स्थान दिया जाता था।
मदरसों के साथ छात्रावास होने के कारण अध्यापक छात्रों के व्यक्तिगत सम्पर्क में रहते थे।
मुस्लिम काल के अन्त में यह संबंध धीरे-धीरे खत्म होने लगा और छात्र अनुशासनहीनता करने लगे।
औरंगजेब ने भरे दरबार में अपने अध्यापक शाह सालेह का अपमान किया था।
उर्दू भाषा का विकास:-
मुस्लिम युग में उर्दू भाषा का विकास हुआ एवं इसी भाषा को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया गया।
अरबी तथा फारसी की शिक्षा पर बल।
मुस्लिम काल में फारसी तथा अरबी की शिक्षा पर विशेष रूप से जोर दिया जाता था।
साहित्य की प्रगति:-
इस युग में साहित्य के क्षेत्र में भी प्रगति हुई प्रत्येक सम्राट द्वारा विद्वानों को आश्रय प्रदान किया जाता था ।
इतिहासकारों में ताजुल मासीर का रचयिता हसन-निजामी, तवकाते नासिरी के लेखक मिनहाज उस सिराज, तारीख-ए-फिरोज शाही व फतवाए जहाँदारी के लेखक जियाउद्दीन बरनी, फुतहउस सलातीन के लेखक एसामी, तारीख-ए-फिरोजशाही के लेखक अफीफ, तारीख-ए-मुबारकशाही के लेखक यहिया बिन अहमद सरहिन्दी, तारीफ-ए-मुहम्मदी के लेखक मुहम्मद विहमन्द खानी थे।
इसके अलावा लेखन सामान्य गणित आर्जीन वीसी आदि भी सिखाया जाता था।
उच्च स्तर पर पाठ्यचर्या दो भागों में विभाजित थी जैसे पारलौकिक एवं अलौकिक।
स्त्री शिक्षा की दशा पर्दा प्रथा के कारण बेहतर नहीं थी लेकिन धनी एवं राज परिवार के लोग अपने घर की औरतों के लिए निजी मौलवी नियुक्त करते थे।
इस युग की शिक्षा में अनुशासन का गहरा महत्व था तथा गंभीर गलती करने पर छात्रों को मुर्गा बनाया जाता था या कूड़े या बैंकों से मारा जाता था।
मेधावी छात्रों के लिए निशुल्क भोजन वस्त्र एवं छात्रावास की सुविधा की गई थी।
मुस्लिम कालीन शिक्षा का माध्यम :-
अरबी, फ़ारसी तथा उर्दू भाषा थी।
अनुशासन :-
दण्डात्मक।
कठोर शारीरिक दण्ड का आरंभ।
कक्षा नायक पद्धति का बहुतायत।
पर्दा पर्था के प्रभाव से महिला शिक्षा दयनीय थी।
इस्लामी शिक्षा (मुस्लिम कालीन शिक्षा) के गुण :-
शिक्षा के सार्वभौमिक विषयों का संतुलन।
छात्रों की सुख सुविधाओं का ध्यान।
इस्लामी शिक्षा (मुस्लिम कालीन शिक्षा)के दोष :-
धर्म का प्रभाव/ धर्म आधारित शिक्षा।
शिक्षा पर शासन का अधिकार।
कठोर शारीरिक दण्ड का प्रावधान।
महिला शिक्षा की उपेक्षा/ दयनीय।